डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज  प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य  ‘फत्तेभाई का स्वर्ग’। इस अतिसुन्दर व्यंग्य रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 138 ☆

☆ व्यंग्य – फत्तेभाई का स्वर्ग  

फत्तेभाई नगर में एक धर्मयोद्धा के रूप में विख्यात रहे। जहाँ भी धर्म के नाम पर कहीं फ़साद की खबर मिलती, वहाँ उड़ कर पहुँच जाते। दृश्य पर उनके अवतरित होते ही वातावरण का पारा ऊपर चढ़ जाता। फिर कोई तर्क, कोई समझाइश, कोई प्रार्थना कारगर न होती। होता वही जो फत्तेभाई चाहते। पुलिस-प्रशासन उन पर हाथ डालने में डरते थे क्योंकि उन्होंने शिष्यों की एक बड़ी फौज तैयार कर ली थी,जो उनके इशारे पर कहीं भी जूझने को तैयार रहती थी।

ऐसे ही फ़साद की एक जगह पर एक दिन फत्तेभाई पहुँचे थे और वहाँ जनता को प्रभावित करने के लिए अपने बाहुबल का प्रदर्शन कर रहे थे। वे चीख चीख कर दूसरे पक्ष के लोगों को ललकार रहे थे कि अचानक उनके दिमाग़ की नस जवाब दे गयी और वे ‘कोमा’ में चले गये। शिष्य तत्काल उन्हें लाद कर अस्पताल ले गये जहाँ दो दिन ‘कोमा’ में रहने के बाद उनके गौरवशाली जीवन पर ‘फुलस्टॉप’ लग गया।

फत्तेभाई की आत्मा सीधी उड़कर परलोक चली गयी। (आत्मा बिना गाइडेंस के इतनी दूर परलोक कैसे पहुँच जाती है यह मुझे नहीं मालूम।) वहाँ पहुँची तो देखा सामने एक लंबी पर्णकुटी है और सब तरफ वैसी ही कुटियाँ फैली हैं। सब तरफ अजीब सा सन्नाटा था। सामने वाली कुटी में तीन चार लोग ख़ामोश बैठे थे और आठ दस लोग इधर-उधर डोल रहे थे।

फत्तेभाई की आत्मा अकड़ती हुई कुटिया में घुसी। सामने बैठे लोगों से बोली, ‘हम भोपाल के फत्तेभाई की आत्मा हैं। शायद आपने हमारा नाम सुना होगा। हमारे शहर में तो बच्चा बच्चा हमें जानता है। हमने अपने धर्म की रक्षा के लिए बहुत काम किया है और आज धर्म की राह में ही अपने प्राणों का उत्सर्ग किया है। हमारा नाम स्वर्ग की लिस्ट में होगा। बताइए, हमारे ठहरने का इंतज़ाम कहाँ है?हमने तो सोचा था कि यहाँ गाजे-बाजे के साथ हमारी अगवानी होगी, लेकिन यहाँ तो कुछ दिखायी नहीं पड़ता। लगता है यहाँ का हाल भी धरती जैसा ही है।’

वहाँ बैठे लोगों में से जो प्रमुख दिखता था वह बोला, ‘पता नहीं लोगों को यह क्या रोग हो गया है। जो आता है वह स्वर्ग स्वर्ग रटता हुआ आता है। भैया, यहाँ स्वर्ग वर्ग कुछ नहीं है। यहाँ पर आत्माओं के अन्तरण का काम होता है। आपकी जाँच की जाएगी कि आपको जिस योनि में भेजा गया था उसके अनुरूप आपने काम किया या नहीं। जैसे कि आपको इंसान बनाकर भेजा गया था तो अगर आपने इंसान के अनुरूप जीवन यापन नहीं किया तो आपको किसी दूसरी योनि में भेजा जा सकता है। और अगर इंसान जैसे रहे तो दुबारा इंसान बनने का मौका मिल सकता है। इसी को स्वर्ग नरक कह सकते हो। बाकी स्वर्ग नरक कुछ नहीं है।

‘और आप यह जो बार बार धर्म की बात करते हो यह हमारी समझ से बाहर है। हम कोई धर्म वर्म नहीं समझते। इंसान का धर्म इंसानियत है, बाकी बातें हमारी समझ से परे हैं।’

फत्तेभाई सुनकर चक्कर में पड़ गये। बोले, ‘भैया, यह इंसानियत का धर्म क्या है?जरा समझाइए।’

प्रमुख बोला, ‘इंसानियत का धर्म यही है कि दूसरे इंसानों और सभी जीवों से प्रेम करो, उनकी मदद करो, अपनी दुनिया और अपने समाज को बेहतर बनाने के लिए जो कर सको, करो। खुद शान्ति से रहो और दूसरों को चैन से रहने दो।’

फत्तेभाई बोले, ‘और यह जो हम अपने धर्म के लिए जान हथेली पर लिये रहते हैं, उसके लिए कोई क्रेडिट नहीं है?’

प्रमुख बोला, ‘हमें न बताओ। हमें सब पता है कि तुम्हारे लोक में धर्म के नाम पर क्या क्या होता है। जो तुम्हारा धर्म निश्चित किया गया है उसे छोड़कर तुम सब करते हो। न खुद चैन से बैठते हो, न दूसरों को बैठने देते हो।’

फत्तेभाई बोले, ‘वहाँ लोग स्वर्ग के लालच में शरीर और मन पर भयंकर कंट्रोल लगा रहे हैं, शरीर को पत्ते जैसा सुखा रहे हैं, धर्म के नाम पर सिरफुटौव्वल कर रहे हैं, और आप कहते हो कि स्वर्ग जैसी कोई चीज़ ही नहीं। यह बात नीचे तक पहुँच जाए  तो पूरे भूलोक में हाहाकार मच जाएगा।’

प्रमुख हँसकर बोला, ‘बताने के लिए लौट कर कौन जाएगा?’ फिर बोला, ‘अब आप कुटिया नंबर 173 में जाओ। वहाँ आपकी गहन जाँच होगी। आपके किये कर्मों की जाँच-पड़ताल होगी। फिर तय होगा कि आपको अब कौन सी योनि ‘एलॉट’ की जाए।’

फत्तेभाई दुखी मन और भारी कदमों से कुटिया नंबर 173 की तरफ अग्रसर हुए।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments