श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना “मोती, धागा और माला …”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 99 ☆
कितना सहज होता है, किसी के परिश्रम पर अपना हक जमाना। जमाना बदल रहा है किंतु मानवीय सोच आज भी लूट- खसोट के साए से बाहर आना नहीं चाहती है या आने की जद्दोजहद करती हुई दिखाई देती है। धागे ने माला पर हक जताते हुए कहा, मेरे कारण ही तुम हो। तभी बीच में बात काटते हुए मोती ने कहा तारीफ तो मेरी हो रही है कि कितने सुंदर मोती हैं। सच्चे मोती लग रहे हैं।
माला ने कहा सही बात है तुम्हारी सुंदरता से मेरी कीमत और बढ़ जाती है।
धागा मन ही मन सोचने लगा कि ये दोनों मिलकर अपने गुणगान में लगे हैं कोई बात नहीं अबकी बार ठीक समय पर टूट कर दिखाऊंगा जिससे माला और मोती दोनों अपनी सही जगह पर दिखाई देंगे।
ऐसा किसी एक क्षेत्र में नहीं, जीवन के सभी क्षेत्रों पर इसका असर साफ दिखाई देता है। नींव की उपेक्षा करके विशाल इमारतें खड़े करने के दौर में जीते हुए लोग अक्सर ये भूल जाते हैं कि समय- समय पर उनके प्रति कृतज्ञता भी व्यक्त करनी चाहिए। स्वयं आगे बढ़ना और सबको साथ लेकर चलना जिसे आ गया उसकी तरक्की को कोई नहीं रोक सकता है। योजना बनाना और उसे अमलीजामा पहनाने के मध्य लोगों का विश्वास हासिल करना सबसे बड़ी चुनौती होती है जिसे सच्ची सोच से ही पाया जा सकता है। श्रेय लेने से श्रेस्कर है कि कर्म करते चलें, वक्त सारे हिसाब- किताब रखता है। समय आने पर उनका लाभ ब्याज सहित मिलेगा।
थोथा चना बाजे घना, आखिर कब तक चलेगा, मूल्यांकन तो सबकी निगाहें करती रहती हैं। धागे को सोचना होगा कि वो भी अपने सौंदर्य को बढ़ाए, सोने के तार में पिरोए गए मोती को देखने से पहले लोग तार को देखते हैं उसके वजन का अंदाजा लगाते हुए अनायास ही कह उठते हैं; मजबूत है। यही हाल रेशम के धागे का होता है। करीने से चमकीले धागों के साथ जब उसकी गुथ बनाई जाती है तो मोतियों की चमक से पहले रेशमी, चमकीले धागों की प्रशंसा होती है। सार यही है कि आप भले ही धागे हों किन्तु स्वयं की गुणवत्ता को मत भूलिए उसे निखारने, तराशने, कीमती बनाने की ओर जुटे रहिए। अमेरिकी उद्यमी जिम रॉन ने ठीक ही कहा है – “आप अपने काम पर जितनी ज्यादा मेहनत करते हैं, उससे कहीं ज्यादा मेहनत खुद पर करें।”
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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