हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं – # 20 – अधूरा ख्वाब ☆ – श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक अतिसुन्दर लघुकथा “अधूरा ख्वाब”। श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ़ जी ने इस लघुकथा के माध्यम से एक सन्देश दिया है कि – ख्वाब देखना चाहिए। यह आवश्यक नहीं की सभी ख्वाब अधूरे ही होते हों । कभी कभी अधूरे ख्वाब भी पूरे हो जाते हैं। ईमानदारी से प्रयास का भी अपना महत्व है।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं # 20 ☆
☆ अधूरा ख्वाब ☆
जीवन लाल और धनिया दोनों मजदूरी करते थे। दिन भर काम करने के बाद जो मिल जाता उसे बड़े प्रेम से ग्रहण कर भगवान को धन्यवाद करते थे। उनकी एक छोटी सी बिटिया थी। वह भी बहुत धीरज वाली थी। कभी किसी चीज के लिए परेशान नहीं करती थी। बहुत कम उम्र में ही उसने अपने आप को संभाल लिया और सहनशक्ति, संतोष की धनी बन गई। उसके दिन भर इधर-उधर चहकने और खेलने कूदने के कारण जीवन लाल और धनिया अपनी बेटी को ‘चिरैया’ कहते थे।
चिरैया धीरे-धीरे बड़ी होने लगी आसपास के घरों में मां के साथ जाती। बड़े बड़े झूले लगे देख उसके बाल मन में बहुत खुशी होती कि, उसका अपना भी कोई बड़ा सा झूला हो, जिसमें बैठकर वह पढ़ाई करती, गाना गाती और माँ-बापू को भी झूला झूलाती। पर किसी के घर उसको झूले में बैठने की अनुमति नहीं मिलती थी।
गार्डन में लगा झूला देख मन ही मन प्रसन्न हो जाती थी। कभी-कभी बापू के साथ झूल आया करती थी। पर उसका ख्वाब उसके मन में घर बना चुका था।
चिरैया बड़ी हो गई पास में ही एक अच्छे परिवार के लोग किराए से रहने आए। उनका सरकारी स्थानांतरण हुआ था। चिरैया की माँ उनके घर काम पर जाती थी। पर अब चिरैया बड़ी हो गई थी। उसे किसी के यहाँ जाना अच्छा नहीं लगता था।
एक बार बाहर से उनका पुत्र आया, रास्ते में जाते हुए चिरैया को देख उसे पसंद कर अपने मम्मी पापा से शादी की इच्छा बताई। पूछने पर पता चला वह तो अपनी धनिया की बिटिया है। मम्मी पापा अपने इकलौते बेटे की खुशी को तोड़ना नहीं चाह रहे थे। उन्होंने धनिया से उसकी लड़की का पसंद जानना चाहा। परन्तु, गरीब की क्या पसंद और क्या नापसंद।
चिरैया तैयार हो गई। घर में ही सगाई हो गई, और जीवनलाल ने हाथ जोड़कर समधी जी से कहा “मेरी बिटिया को बड़े झूले में बैठने का बहुत शौक है। अब आपके घर पूरा होगा। मैं आपको कुछ भी नहीं दे सकता। अब बिटिया आपकी बहू हो गई।” शहर में शादी होनी थी। जीवनलाल धनिया और चिरैया सभी को लेकर शहर आ गए।
उनका आलीशान बंगला देख कर इन लोगों का मन भर आया। सभी आसपास पूछने लगे कि लड़की के घर से क्या आया है। सज्जन व्यक्ति ने सभी से कहा “शाम को आइए घर पर सब दिख जाएगा।” माँ बापू दोनों एक कमरे में बैठे थे बंगला चारों तरफ से सजा हुआ था। शाम को बड़े से गार्डन के बीच बहुत बड़ा झूला लगा था। बहुत कीमती उस पर सोने चांदी, हीरो की हार पहने चिरैया बैठी थी। किसी राजकुमारी की तरह कीमती पोशाक पहन। दुल्हन को कीमती झूले पर बैठे देख सबकी आंखें देखती रह गई।
चिरैया तो बस अपनी सुंदरता लिए बड़ी- बड़ी आंखों से सब देख रही थी। बेटे के पिताजी ने सबका ध्यान आकर्षित कर कहा “यह खूबसूरत सी बिटिया और यह कीमती झूला हमारे समधी साहब के यहाँ से आया है।” पास खड़े जीवनलाल और धनिया बस अपनी बिटिया को झूले पर सोलह सिंगार किए बैठे अपलक देख रहे थे।
बरसों का अधूरा ख्वाब आज पूरा हुआ दोनों की आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश