सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “नया ज़माना ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 13 ☆
ज़िंदगी के कदम कुछ परेशान, जिस्म लगता लाचार
हर कोई है चैन की खोज में, पर मिलता नहीं क़रार
बहला लेता है हर कोई दिल को, माना कि वो झूठ है
और इस दाग़ से लिपटे कपट की, लगती जाती कतार
नए ज़माने के नए रंग-ढंग हैं, किसको किसकी फिकर
पहले जो ठोस से खड़े थे रिश्ते, उनमें आ गयी दरार
हर कोई सोचता है अपनी-अपनी, नरमी खो गयी है
प्यार भी एक धोखे सा रह गया, मिट गया ऐतबार
सुकून अब कहाँ पाएंगी हवाएं, वो भी प्रदूषित हो गयीं
नीलम बैठे-बैठे सोच में खोयी है, कहाँ जा रहा संसार
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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