श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना “शांति और सहयोग…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 100 ☆
☆ शांति और सहयोग… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆
आजकल यूट्यूब और इंस्टाग्राम में पोस्ट करने का चलन इस कदर बढ़ गया है कि हर पल को शेयर करने के कारण व्यक्ति कोई भी थीम तलाश लेता है। उसका उद्देश्य मनोरंजन के साथ ही लाइक व सब्सक्राइब करना ही होता है। यू टयूब के बटन को पाने की होड़ ने कुछ भी पोस्ट करने की विचारधारा को बलवती किया है। तकनीकी ने एक से एक अवसर दिए हैं बस रोजगार की तलाश में भटकते युवा उसका प्रयोग कैसे करते हैं ये उन पर निर्भर करता है।
एप का निर्माण और उसे अपडेट करते रहने के दौरान अनायास ही संदेश मिलता है कि समय के साथ सामंजस्य करने का हुनर आना चाहिए। कदम दर कदम बस चलते रहना है। एक राह पर चलते रहें, मनोरंजन के अवसर मिलने के साथ ही रोजगार परक व्यवसाय की पाइप लाइन बनाना भी आना चाहिए। सभी बुद्धिजीवी वर्ग को इस बात की ओर ध्यान देना होगा कि सबके विकास को, सबके प्रयास से जोड़ते हुए बढ़ना है। एक और एक ग्यारह होते हैं इसे समझते हुए एकता की शक्ति को भी पहचानना होगा। संख्या बल केवल चुनावों में नहीं वरन जीवन हर क्षेत्र में प्रभावी होता है। कैसे ये बल हमारी उन्नति की ओर बढ़े इस ओर चिन्तन मनन होना चाहिए।
आजकल जाति वर्ग के आधार पर निर्णयों को प्रमुखता दी जाती है। इसे एकजुटता का संकेत माने या अलगाव की पहल ये तो वक्त तय करेगा।किन्तु प्रभावी मुद्दे मीडिया व जनमानस की बहस का हिस्सा बन कर सबका टाइम पास बखूबी कररहे हैं। आक्रोश फैलाने वाली बातों पर चर्चा किस हद तक सही कही जा सकती है। इन पर रोक होनी चाहिए। कार्यों का होना एक बात है किन्तु बिनाबात के हल्ला बोल या ताल ठोक जैसे कार्यक्रम किसी भी हद तक सही नहीं कहे जा सकते हैं। इन सबका असर जन मानस पर पड़ता है सो सभी को एकजुटता का परिचय देते हुए सहयोगी भाव से सही तथ्यों को स्वीकार करना चाहिए।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
मूल्यांकन का आधार संख्याबल नहीं, उसकी गुणवत्ता होना चाहिए।
सुंदर आलेख छाया जी