डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 89 – दोहे
अनुभव होता प्रेम का, जैसे जलधि तरंग ।
नस -नस में लावा बहे, मन में रंगारंग।।
उसे जानता कौन जो, सागर का विस्तार ।
मंदिर या मस्जिद नहीं, कहलाता वह प्यार।।
आयत कहता हूं उसे, कहता उसे कुरान।
मेरे लेख प्रेम है, गीता वेद पुरान।।
परिभाषा दें प्रेम की, किसकी है औकात।
कभी मरुस्थल- सा लगे कभी चांदनी रात।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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