श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण रचना “शहर…”।)
☆ तन्मय साहित्य # 133 ☆
☆ शहर… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
खूबसूरत सा चमकता इक शहर
हर किसी पर, ढा रहा है ये कहर।
भवन बँगले फ्लेट और अपार्टमेंट
ढूंढने से भी मिला नहीं एक घर।
माँ-पिता, मौसी, बुआ, ताऊ कहाँ
मॉम-डैड, कज़न यहां सिस्टर ब्रदर।
भावना, संवेदना से शून्य चेहरे
प्रेम करुणा से रहित सूने महल।
दौड़ – भाग अजब यहाँ रफ्तार है
है किसे फुर्सत घड़ी भर ले ठहर।
कैद घड़ियों में हुआ अब आदमी
है कहाँ अब साँझ, सुबहो-दोपहर।
अब निगलने भी लगा यह गाँव को
फैलता ही जा रहा इसका जहर।
गीत भी है गजल भी इस शहर में
किंतु कंठों में नहीं है मधुर स्वर।
एक, दूजे से अपरिचित सब यहाँ
कब बहेगी नेह की मीठी नहर।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
अलीगढ़/भोपाल
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈