श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.  “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  आपकी मनाली यात्रा पर “संतोष के दोहे …  । आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 123 ☆

☆ मनाली यात्रा … संतोष  के दोहे ☆ श्री संतोष नेमा ☆

कहता हिमगिरि आपसे, मुझसे ऊँचा कौन

सुन सवाल सब हो गए, शीश झुकाकर मौन

 

उन्नत है मेरा शिखर, धवल हमारा रंग

मन मोहक हैं वादियाँ, अजब निराले ढंग

 

साहस, दृढ़ता जो रखे, हो मजबूत शरीर

आता वही करीब तब, भजकर श्री रघुवीर

 

टेढ़े- मेढे रास्ते, जो होते हैं तंग

सिखलाते हैं जो हमें, जीवन के सब ढंग

 

हिम आच्छादित शैल से, बहती निर्मल धार

नदियों की कल-कल कहे, मेरी सुनो पुकार

 

धवल चाँदनी बर्फ की, जिसका ओर न छोर

मचल-मचल तारुण्य ज्यों, बढ़े  प्रेम की ओर

 

ऊपर से काँपे बदन, अंदर प्रीत-हिलोर

कैसे कोई कर सका, यहाँ  तपस्या घोर

 

घाटी दर घाटी चढ़ो, चलो शिखर की राह

जीवन पथ पर बढ़ चलो, रख मंज़िल की चाह

 

अटल इरादे हिम-शिखर, सिखलाते हैं रोज

पानी है गर सफलता, दिल में रखिये ओज

 

लतिकाओं तरु कुंज में, झरनों का संगीत

मानो प्रियतम कह रहा, आ जाओ मनमीत

 

सिर पर हिमगिरि सोहता, बनकर मुकुट विशाल

भारत माँ गर्वित हुई, दमक उठा है भाल

 

हवा सनक कर कह रही, मुझसे बचिए आप

शाल ओढ़ स्वेटर पहन, दें शरीर को ताप

 

मनमोहक-सा लग रहा, बर्फीला आघात

तपते दिल की भूमि पर, सुख का ज्यों हिमपात

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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