श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण रचना “किसे पता था….…”।)
☆ तन्मय साहित्य # 134 ☆
☆ किसे पता था….… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
कब सोचा था
ऐसा भी कुछ हो जाएगा
बँधी हुई मुट्ठी से
अनायास यूँ सब कुछ खो जाएगा।
कितने जतन, सुरक्षा के पहरे थे
करते वे चौकस हो कर रखवाली
प्रतिपल को मुस्तैद
स्वाँस संकेतों पर बंदूक दोनाली,
किसे पता,
कब बिन आहट के
गुपचुप मोती छिन जाएगा
बँधी हुई मुट्ठी से…………..।
खूब सजे सँवरे घर में हम खुद पर
ही थे आत्ममुग्ध, खुद पर लट्टू थे
भ्रम में सारी उम्र गुजारी,समझ न पाए
केवल भाड़े के टट्टू थे,
किसे पता,
बिन पाती बिन संदेश
पँखेरू उड़ जाएगा
बँधी हुई मुट्ठी से…………………।
कितना था विश्वास प्रबल कि,
इस मेले में नहीं छले हम जायेंगे
मृगतृष्णाओं को पछाड़ कर,
लौट सुरक्षित,साँझ ढले वापस आएंगे,
किसे पता,
त्रिशंकु सा जीवन भी
ऐसे सम्मुख आएगा
बँधी हुई मुट्ठी से…………।
लौट-लौट आता वापस मन
कितना है अतृप्त बुझ पाती प्यास नहीं
पदचिन्हों के अवलोकन को
किन्तु राह में अब है कहीं उजास नहीं,
किसे पता,
तन्मय मन को, आखिर में
ऐसे भटकाएगा
बँधी हुई मुट्ठी से अनायास यूँ
सब कुछ खो जाएगा।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
अलीगढ़/भोपाल
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈