डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज  प्रस्तुत है समसामयिक विषय पर आधारित आपका एक अतिसुन्दर विचारणीय व्यंग्य  ‘जल-संरक्षण के व्रती’। इस अतिसुन्दर व्यंग्य रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 143 ☆

☆ व्यंग्य – जल-संरक्षण के व्रती

दशहरा मैदान में जल-संरक्षण पर धुआँधार भाषण हो रहे थे। बड़े-बड़े उत्साही वक्ता और विशेषज्ञ जुटे थे। कुछ गाँवों, शहरों में ‘वाटर हार्वेस्टिंग’ की बात कर रहे थे, कुछ पुराने टाइप के फटकारदार कुल्लों का त्याग करने की गुज़ारिश कर रहे थे। कुछ टॉयलेट में कम पानी बहाने का सुझाव दे रहे थे। कुछ की शिकायत थी कि स्त्रियाँ अमूमन ज़्यादा नहाती हैं और केश धोने में अधाधुंध पानी खर्च करती हैं, इसलिए जल- संरक्षण की दृष्टि से सभी स्त्रियों को अपने बाल छोटे करा लेना चाहिए। इससे जल की बचत होने के साथ-साथ वे आधुनिका भी दिखेंगीं। इससे घरेलू हिंसा भी कम होगी क्योंकि पति महोदय आसानी से पत्नी के केश नहीं गह सकेंगे। एक साहब ने क्रान्तिकारी सुझाव दिया कि भारत में टॉयलेट के भीतर ‘टॉयलेट पेपर’ का उपयोग कानूनन अनिवार्य बना देना चाहिए और वहाँ पानी बहाने वालों को जेल भेजना चाहिए।

यह भी सुझाव आया कि जैसे फौज में दारू का कम उपभोग करने वाले जवानों के अफसरों को पुरस्कृत किया जाता है वैसे ही शहरों में साल भर में पानी का न्यूनतम उपयोग करने वाले परिवारों को पुरस्कृत और सम्मानित किया जाना चाहिए और इसके लिए तत्काल जाँच- प्रक्रिया का निर्धारण किया जाना चाहिए।

इस सभा में मंच पर दूसरी पंक्ति में चार महानुभाव आजू बाजू विराजमान थे। बढ़ी दाढ़ी और मैले-कुचैले कपड़े। लगता था महीनों से शरीर को जल का स्पर्श नहीं हुआ। उनके आसपास बैठे लोग नाक पर रूमाल धरे थे।

अन्य वक्ताओं के भाषण के बाद संचालक महोदय बोले, ‘भाइयो, आज हमारे बीच चार ऐसी हस्तियाँ मौजूद हैं जिन्होंने अपने को पूरी तरह जल-संरक्षण के प्रति समर्पित कर दिया है। इन्होंने अपने व्रत के कारण समाज से बहुत उपेक्षा और अपमान झेला, लेकिन ये अपने जल-संरक्षण के व्रत से रंच मात्र भी नहीं डिगे। ज़रूरत है कि अपने उसूलों के लिए जीने मरने वाली ऐसी महान विभूतियों को समाज पहचाने और उन्हें वह सम्मान प्राप्त हो जिसके ये हकदार हैं। अब आपका ज़्यादा वक्त न लेकर मैं इन चार जल- संरक्षण सेनानियों में से श्री पवित्र नारायण को आमंत्रित करता हूँ कि वे माइक पर आयें और अपने साथियों के द्वारा जल-संरक्षण के लिए किये गये कामों पर विस्तृत प्रकाश डालें।’

नाम पुकारे जाने पर जल-संरक्षण के पहले सेनानी पवित्र नारायण जी सामने आये। उनके दर्शन मात्र से दर्शक धन्य हो गये। चीकट कपड़े, हाथ-पाँव पर मैल की पर्तें, पीले पीले दाँत और आँखों में शोभायमान कीचड़। दर्शक मुँह खोले उन्हें देखते रह गये।

पवित्र नारायण जी माइक पर आकर बोले, ‘भाइयो, आज मुझे और मेरे कुछ साथियों को आपके सामने आने का मौका मिला, इसके लिए हम आज के कार्यक्रम के आयोजकों के आभारी हैं। मैंने और मेरे साथियों ने जब से होश सँभाला तभी से हम जल-संरक्षण में लगे हैं, लेकिन हमें अफसोस है कि दुनिया ने हमें हमेशा गलत समझा है। इस कार्यक्रम में आने के बाद हमारे मन में उम्मीद जगी है फिर हमारे काम को समझा और सराहा जाएगा।

‘भाइयो, हमारी जल-संरक्षण की प्रतिबद्धता इतनी अडिग है कि हम कई साल से तीन-चार मग पानी में ही अपनी दिन भर की क्रियाएँ संपन्न कर रहे हैं। न हमें स्नान का मोह है, न कपड़े चमकाने का। पानी की बचत ही हमारे जीवन का एकमात्र लक्ष्य है। कुछ लोग इस गलतफहमी का शिकार हो जाते हैं कि हम स्वभावतः गन्दे हैं, लेकिन यह सच नहीं है। हम यहाँ इस उम्मीद से आये हैं कि कम से कम आप लोग हमें सही समझेंगे और हमारे काम और त्याग को महत्व देंगे।’

इतना बोल कर उन्होंने जनता की तरफ देखा कि उनके वक्तव्य पर ताली बजेगी, लेकिन वहाँ तो सबको साँप सूँघ गया था।

जनता में माकूल प्रतिक्रिया न देख पवित्र नारायण जी ने अपने तीनों साथियों को जनता के सामने ला खड़ा किया। बोले, ‘भाइयो, इस जल-संरक्षण अभियान में शामिल अपने तीन साथियों का परिचय कराता हूँ। ये धवलनाथ हैं। इनके हुलिया से ही आप समझ सकते हैं कि इन्होंने कितनी ईमानदारी से अपने को जल-बचत अभियान में झोंक रखा है। ये पानी की एक बूँद को भी ज़ाया करना हराम समझते हैं। लेकिन विडम्बना देखिए कि इनकी दस साल पहले शादी हुई और बीवी दूसरे ही दिन इस महान आदमी को छोड़कर चली गई। तब से उसने इधर का रुख नहीं किया। धवलनाथ जी का जज़्बा देखिए कि इस हादसे के बाद भी वे अपने मिशन में तन मन से लगे हैं।

‘और ये हमारे एक और साथी सुगंधी लाल हैं। आप देख सकते हैं कि इनकी उम्र ज्यादा नहीं है, लेकिन ये भी पूरी तरह हमारे मिशन को समर्पित हैं। अपने उद्देश्य के लिए इनका त्याग भी ऊँचे दर्जे का है। पिछले चार-पाँच सालों में इनको चार पाँच बार इश्क हुआ, लेकिन हर बार एक दो महीने में ही इनकी महबूबा ने इन से कन्नी काट ली। शिकायत वही  घिसी-पिटी है कि ये नहाते- धोते नहीं हैं। इसके जवाब में हमारे भाई सुगंधी लाल जी पूछते हैं कि जब मजनूँ, फरहाद, रांँझा और महीवाल इश्क फ़रमाने निकलते थे तो क्या वे रोज़ नहाते थे? महीवाल ज़रूर मजबूरी में नहाते होंगे क्योंकि कहते हैं कि वे दरया में तैर कर अपनी महबूबा से मिलने जाते थे, लेकिन बाकी महान प्रेमियों के नहाने का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। जो भी हो, अब भाई सुगंधी लाल ने मुहब्बत जैसी फिजूल बातों से मुँह मोड़ लिया है और पूरी तरह जल-बचत अभियान में डूब गये हैं। लोग कहते हैं कि इन्हें ‘हाइड्रोफोबिया’ है। बात सही भी है, लेकिन यह कुत्ते को काटने वाला हाइड्रोफोबिया नहीं है। इन्हें आपके आशीर्वाद की ज़रूरत है।’

पवित्र नारायण जी ने अपने आखिरी साथी का परिचय कराया, कहा ‘ये हमारे बड़े समर्पित साथी शफ़्फ़ाक अली हैं। इनके साथ यह जुल्म हो रहा है कि लोगों ने इनके मस्जिद में घुसने पर पाबन्दी लगा दी है। कहते हैं ये नापाक हैं। लेकिन भाई शफ़्फाक अली अपने उसूलों पर चट्टान की तरह कायम हैं। इनका कहना है नमाज़ तो कहीं भी और कैसे भी पढ़ी जा सकती है। उसके लिए मस्जिद की क्या दरकार?’

उपसंहार के रूप में पवित्र नारायण बोले, ‘तो भाइयो, मैंने जल-संरक्षण में पूरी तरह समर्पित इन साथियों से आपका परिचय कराया। हमारी इच्छा है कि समाज और सरकार हमारे काम को तवज्जो दे और हमें स्वतंत्रता-संग्राम सेनानियों के बराबर दर्जा दिया जाए। हमें प्रशस्ति-पत्र मिले और हमारे लिए पेंशन मुकर्रर हो। इसके अलावा जो लोग हमसे अछूतों जैसा बर्ताव करते हैं उन्हें छुआछूत कानून के अंतर्गत दंडित किया जाए। हमें पूरी उम्मीद है कि हमारी आवाज सरकार के कानों तक पहुँचेगी और हमें हमारी कुरबानी के हिसाब से सम्मान और पुरस्कार मिलेगा।’

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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