डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम गीत – एक लहर कह रही कूल से…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 91 – गीत – एक लहर कह रही कूल से…
एक लहर कह रही कूल से बँधे हुए हैं क्यों दुकूल से।
एक किरन आ मन के द्वारे अभिलाषा की अलग सँवारे
संभव कहां अपरिचित रह ना बार-बार जब नाम पुकारे।
सोच रहा हूं केवल इतना, क्या मन मिलता कभी भूल से।
इसी तरह के वचन तुम्हारे अर्थ खोजते खोजन हारे
मौन मुग्ध सा अवश हुआ मैं शब्दवेध की शक्ति बिसारे।
सोच रहा हूं केवल इतना, प्रश्न किया क्या कभी फूल से
भ्रमर बँधे हैं क्यों दुकूल से।
एक लहर कह रही कूल से बने हुए हो क्यों दुकूल से ?
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बेहतरीन अभिव्यक्ति