श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना  “भावना में संभावनाओं का खेल”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 103 ☆

☆ भावना में संभावनाओं का खेल ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’  

कहते हैं मन पर विजय प्राप्त हो जाए तो सब कुछ अपने वश में किया जा सकता है। पर क्या किया जाए यही तो चंचल बन मारा- मारा फिर रहा है। समस्या कितनी भी बड़ी क्यों न हो वो अपने साथ समाधान लेकर चलती है। आज नहीं तो कल व्यक्ति लक्ष्य को हासिल कर ही लेगा बस ध्यान में ये रखना होगा कि हमें सकारात्मक चिंतन करते हुए सबको एक सूत्र में जोड़ते हुए चलना है।

ये सही है कि रहिमन इस संसार में भाँति- भाँति के लोग किन्तु हमें अपनी मंजिल को पाना ही होगा। भावनाओं का महत्व अपनी जगह सही है लेकिन हर जगह इसकी उपस्थित खटकती है। हमको मिलकर आगे बढ़ना होगा। कटीले तारों की बाड़ी बनाकर खेतों की रक्षा की जाती है परन्तु पैदावार बढ़ाने हेतु खाद का सहारा लेना पड़ता है। जीवन के निर्णय भी इन कार्यों से अछूते नहीं हैं। समय- समय पर परीक्षा देनी होती है। एक तरह कुँआ तो दूसरी ओर खाई ऐसे में कुशल खिलाड़ी तेजी दौड़ते हुए कुछ कदम पीछे की ओर करता है फिर पूरे मन से जोर लगाते हुए लक्ष्य की ओर पहुँच जाता है।

ऐसा ही होना चाहिए। कुछ करो या मरो जैसा जज़्बा रखने वालों को मंजिल मिलती है। अनावश्यक मोबाइल पर रोजगार सर्च करने में समय लगाने से बेहतर है किसी स्किल पर कार्य करें।

सफल व्यक्ति कार्य करते नहीं है वे तो टीम  बनाते हैं जो उनके लिए कार्य करती रहती है। टीम को मोटिवेट व विल्डअप करते हुए टीम लीडर स्वयं की पहचान बनाने लगता है। लगातार किसी कार्य को करते रहें अवश्य ही विजयी भवः का आशीर्वाद प्रकृति देने लगती है।

संख्या बल की उपयोगिता को समझते हुए समय- समय पर समझौते भी करने पड़ते हैं क्योंकि समय पर जब सचेत नहीं होंगे तो थोड़े -थोड़े लोग आपस में जुड़कर लकड़ी का गट्ठा बना लेंगे जो एकता और शक्ति दोनों के बलबूते पर बिना दिमाग़ के कार्यों की ओर भी प्रवत्त हो सकता है।समय रखते अच्छे विचारों को एक प्लेटफॉर्म पर सच्चाई व सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा हेतु आगे आना चाहिए।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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