श्रीमति विशाखा मुलमुले
(श्रीमती विशाखा मुलमुले जी हिंदी साहित्य की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं. आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है उनकी रचना जीवनोत्सव. अब आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में पढ़ सकेंगे. )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 6 – विशाखा की नज़र से ☆
☆ जीवनोत्सव ☆
खुशी गर तुम हो हमारे जीवन में
तो यूँ छुप के न रहा करो
सम्मुख रहो हमारे
चेहरों पर छा जाया करो
दुःख तुम भी हो गर हमारे जीवन में
तो परछाई की तरह रहा करो
चलो भले ही पीछे – पीछे
पर बेड़ियाँ न बना करो
रोशनी गर तुम भी हमारे जीवन में
तो दियासलाई में न रहा करो
सर संघचालक बन उजास का
मार्गप्रशस्त किया करो
अंधकार तुम भी हो गर हमारे जीवन में
तो वक्त पर ही आया करो
बेवक्त आकर रोशनी से
बिन बात न उलझा करो
जीवन तुम सबको लेकर संगसाथ
अनवरत ताल में कदम बढ़ाया करो
प्रखर , मद्धम या बेताल किसी स्वर को
प्रभातफेरी में गूंथ हौले – हौले गुनगुनाया करो
© विशाखा मुलमुले
पुणे, महाराष्ट्र