श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना  स्थिति परिवर्तन । इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 104 ☆

स्थिति परिवर्तन ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’  

जिस तरह दो स्थितियाँ हमारे सामने होती हैं उसी तरह दो लोग भी होते हैं। एक तो वे जो हमारे अनुरूप कार्य करें और दूसरे वे जो क्रिएटिव तो हों किन्तु मनमानी करें। जिस समय जो चाहिए यदि वो उपलब्ध नहीं होगा। तो ऐसे व्यक्तियों का क्या फायदा। हमें चाहिए आम और वे लोग पपीता ला रहे हैं। तर्क भी ऐसा कि माथे पर बल आना स्वाभाविक है। जब मैंगो शेक  पीने की इच्छा हो और पपीता शेक आए तो गिलास फेंकने का मन करेगा। परन्तु धैर्य रखते हुए सब बर्दाश्त करना पड़ता है। बहुत सुंदर कहते हुए सुखीराम जी आम की खोज में निकल पड़े। अब सच्चे मन से जो चाहो वो मिल  जाता है सो उनको भी मिल गया। 

ये सही है कि इन स्थितियों से बैचेनी बढ़ती है कि सामने वाला आपके अनुसार नहीं अपने अनुसार चल कर मनमानी कर रहा है। प्यास लगने पर पानी ही चाहिए, अच्छा भोजन किसी ने सामने रखा है पर गला सूख रहा है तो पानी ही प्यास बुझायेगा। अब आपकी टीम में ऐसे लोगों की भरमार हो जो मनमर्जी सरकार चलाने में माहिर हों तो जाहिर सी बात है, ऐसे लोग काँटे की तरह चुभेंगे। किसी और कि वफादारी करते हुए ऊल- जुलूल निर्णय कभी  हितकारी नहीं होते। अगर टीम के साथ एकजुटता रखनी है तो सबको अपनी कार्यशैली बदलनी होगी। जिस समय जो कहा जाए वही पूरा हो, बहाने बाजी आसानी से समझ में आ जाती है। एकबार जो व्यक्ति मन से उतरा तो समझो दिमाग़ उसे उतारने में एक पल भी लगाता। आखिर कचरा जमा करने का ठेका थोड़ी ले रखा है।

कोई भी कार्य बिना कुशल नेतृत्व के नहीं होगा। अब ये टीम लीडर की जिम्मेदारी है कि वो सही पहचान करते हुए समय- समय पर खरपतवार जैसे लोगों की छटनी करता रहे। वैसे भी अवांछित वस्तुएँ कबाड़ी को देने का चलन सदियों से चला आ रहा है। मौसम के अनुरूप बदलाव करना उचित होता है किंतु गिरगिट बन जाना किसी को शोभा नहीं देता। टीम में जब तक मेहनती, बुद्धिमान व शीघ्रता से कार्य करने वाले लोग नहीं होंगे तब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं होगा। अक्सर देखने में आता है कि शीर्ष अधिकारी जबर्दस्ती कामचोरों को भी टिका देते जिन्हें समझाते- समझाते पूरा समय बीत जाता है और परिणाम आशानुरूप नहीं आता है। 

जब भी लक्ष्य बड़ा हो तो छोटे-छोटे कदम बढ़ाते हुए सबको साथ लेना चाहिए। क्या पता कौन कब उपयोगी हो। टीम लीडर को अच्छा संयोजक भी होना चाहिए। ऐसे समय मे रहीम दास जी का यह दोहा सार्थक सिद्ध होता है –

रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।

रहिमन फिर -फिर पोइए, टूटे मुक्ताहार।।

खैर समयानुसार निर्णय लिए जाते हैं। टीम चयन करते समय ही ठोक- पीट कर लगनशील व्यक्ति का चयन होना चाहिए क्योंकि जो लगातार कार्य करेगा उसे अवश्य ही सफलता मिलेगी।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments