डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 136 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
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पाती तेरी मिल गई, लिया प्रभु का नाम।
संदेशा आया सुखद, हुई निराली शाम।।
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सुनती है सखियां सभी, क्या लिखते हैं श्याम।
रोम रोम पुलकित हुआ, केवल मेरा नाम।।
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शब्द पाती के पढ़कर, नहीं चैन आराम।
मिलना होगा कब प्रिये, आओगे कब धाम।
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पाती तुमको लिख रही, लिखती हूं अविराम।
शब्द शब्द में है रचा, बस तेरा ही नाम।।
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नेह निमंत्रण दे रहे, इसे करो स्वीकार।
आपस के संबंध में, नहीं जीत या हार।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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