श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 129 ☆

☆ ‌कविता – गीता तत्वबोध  ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

निर्मल चित्त हो प्रेम से,

जो गीता का करता पाठ ।

वह मानव भय शोक रहित हो,

कृष्ण धाम में करता वास ।

 

नित्य निरंतर सदा प्रेम से,

जो गीता को पढ़ता है।

होते नष्ट पाप सब उसके,

मिटते  हैं जीवन संताप।

 

जो करते जल से स्नान,

उनके तन मल होता साफ।

 पर ज्ञान रूप गीता के जल से,

होता है मन का मल साफ।

 

जो कृष्णा के मुख से हुई प्रकट,

केवल उस गीता का पाठ करो।

अन्य देव से क्या मतलब है,

यदुनंदन का ध्यान धरो।

 

महाभारत का मूल तत्व ,

जो मोहन मुख से प्रकट हुआ।

जिसने उसका श्रवण किया,

वह आत्मज्ञान से युक्त हुआ।

 

सारी उपनिषदें गौ समान है,

मनमोहन है दुहने वाला ।

अर्जुन उसका बछड़ा है,

जो पीता है नित सत् का प्याला।

 

यह गीता है सर्वोत्तम है,

यह यदुनंदन की वाणी है।

सब देवों में कृष्ण श्रेष्ठ है,

उनकी अमिट कहानी है।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments