श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। )

आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण एवं विचारणीय कविता – रोपना है मीठी नीम अब हमें… ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 165 ☆

? कविता – रोपना है मीठी नीम अब हमें… ?

कभी देखा है आपने किसी पेड़ को मरते हुये ?

देखा तो होगा शायद

पेड़ की हत्या, पेड़ कटते हुये

 

हमारी पीढ़ी ने देखा है एक

पुराने, कसैले हो चले

किंवाच और बबूल में तब्दील होते

कड़वे बहुत कड़वे नीम के ठूंठ को

ढ़हते हुये

 

हमारे मंदिर और मस्जिद

को देने के लिये

फूल, सुगंध और साया

रोपना है आज हमें

एक हरा पौधा

जो एक साथ ही हो

मीठी नीम, सुगंधित गुलाब और बरगद सा

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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