प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण ग़ज़ल “पीड़ा का भारी बोझ …”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा 87 ☆ गजल – पीड़ा का भारी बोझ … ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
चोटों पै चोट दिल पै कई खाये हुये है।
दुख-दर्दो को मुस्कानों में बहलाये हुये हैं।।
जब से है होश सबके लिये खपता रहा मैं
पर जिनको किया सब, वही बल खाये हुये हैं।।
करता रहा हर हाल मुश्किलों का सामना
पर जाने कि क्यों लोग मुँह फुलाये हुये हैं।।
गम खाके अपनी चोट किसी से न कह सका
हम मन को कल के मोह में भरमाये हुये हैं।।
लगता है अकेले कहीं पै बैठ के रोयें
किससे कहें कि कितने गम उठाये हुये हैं।।
औरों से शिकायत नहीं अपनों से गिला है
जो मन पै परत मैल की चिपकाये हुये हैं।।
दिल पूछता है मुझसे कि कोई गल्ती कहाँ है ?
धीरज धरे पर उसको हम समझाये हुये हैं।।
देखा है इस दुनियाँ में कई करके भी भलाई
अनजानों से बदनामी ही तो पाये हुये हैं।।
करके भी सही औरों को हम खुश न कर सके
पीड़ा का भारी बोझ ये उठाये हुये हैं।।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈