श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 130 ☆

☆ ‌आलेख – गरूड़ पुराण – एक आत्मकथ्य ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

वैसे तो  भारतीय संस्कृति मे हमारी जीवन शैली संस्कारों से आच्छादित है, जिससे हमारा समाज एक आदर्श समाज के रूप में स्थापित हो जाता है क्योंकि जो समाज संस्कार विहीन होता है, वह पतनोन्मुखी हो जाता है।  

संस्कार ही समाज की आत्मा है, संस्कारित समाज सामाजिक रिश्तों के ताने-बाने को मजबूती प्रदान करता है, अन्यथा यह समाज पशुवत जीवनशैली अपनाता है और सामाजिक आचार संहिता के सारे कायदे कानून तोड़ देता हैं।

ऐसा कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जो हिंदू जीवन पद्धति का मूल है, जिसके कारण हमारे सामाजिक तथा पारिवारिक जीवन में दया करूणा प्रेम सहानुभूति जैसे मानवीय मूल्य विकसित होते हैं। इसी क्रम में हमारे जीवन में कर्म कांडों का महत्व बढ़ जाता है। क्योंकि इन सारे कर्म काण्डों के मूल में हमारे शास्त्रों पुराणों उपनिषदों तथा वेदों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। कुल चार वेद, छः शास्त्र, अठ्ठारह पुराण तथा उपनिषद है, और हर पुराण के मूल में कथाएं हैं, जो हमारे आचरण आचार विचार आहार विहार तथा व्यवहार पक्ष को निर्धारित करती है। संरचना के हिसाब से सारे पुराण अध्यायों तथा खंडों में विभाजित है तथा उनके आयोजन का एकमेव उद्देश्य है, मानव का कल्याण।

इस क्रम में श्रीमद्भा गवत कथा को मोक्ष की प्राप्ति कामना से श्रवण किया जाता है, जहां जिसका श्रवण मृत्यु को अवश्यंभावी जानकर प्राणी के मोक्ष हेतु आयोजन का विधान है, तो गरूण पुराण कथा का श्रवण का परिजनों की मृत्यु के बाद लोगों को अपने प्रिय जनों की बिछोह की बेला में दुख और पीड़ा से आकुल व्याकुल परिजनों को कथा श्रवण के माध्यम से दुःख सहने की क्षमता विकसित करता है। और दुखी इंसान को धीरे-धीरे गम और पीड़ा के असह्य दुख से उबार कर सामान्य सामाजिक जीवन धारा में वापस लौटने में मदद करता है। इसके पीछे मन का मनोविज्ञान छुपा है क्योकि जहां जन्म है वहीं मृत्यु भी है। प्राय:इस कथा का आयोजन हिंदू रीति रिवाजों के अनुसार मृत्यु के पश्चात मृतक शरीर की कपाल क्रिया अन्त्येष्टि संस्कार के बाद मृतक के परिजनों द्वारा आयोजित किया जाता है।

तब जब सारे मांगलिक आयोजन वर्जित माने जाते हैं। गरूण पुराण की कथा की बिषय वस्तु पंच तत्व रचित शरीर को मृत्यु के बाद जला देने तथा इसके बाद में इस शरीर में समाहित सूक्ष्म शरीर की परलोक यात्रा के विधान का वर्णन है। हमारे स्थूल शरीर के भीतर एक सूक्ष्म शरीर होता है, जो मन के स्वभाव से आच्छादित होता है क्योकि मृत्यु शैय्या पर पडे़ व्यक्ति में कामनाएं शेष रहती है उस सूक्ष्म शरीर जिसे यमदूत लेकर धर्मराज की नगरी की यात्रा पर निकलते हैं, उसी यात्रा के वृतांत का वर्णन है। गरूण पुराण में जिसमें जिज्ञासु गरूण जी श्री नारायण हरि से प्रश्न करते हैं। और उनकी हर शंका समाधान भगवान विष्णु के द्वारा किया जाता है। उस जीव के भीतर व्याप्त मन जो  दुख और सुख की अनुभूति करता है के कर्मो का पूरा लेखा जोखा प्रस्तुत करते हैं तथा उस यात्रा के दौरान पड़ने वाले पड़ावों का मानव की सूक्ष्म शरीरी यात्रा व शुभ अशुभ कर्मों के परिणाम तथा दंड के विधान की झांकी प्रस्तुत की गई है जिसे देखकर कर सूक्ष्मशरीरी जीव कभी सुखी कभी भयभीत होता है।

इन कथा के श्रवण के पीछे भी लोक कल्याण का भाव समाहित है ताकि हमारा समाज अशुभ कर्मों के अशुभ परिणाम से बच कर, अच्छा कर्म करता हुआ सद्गति को प्राप्त हो अधोगति से बचें। इस कथा में कर्मफल तथा उसके भोग का विधान वर्णित है। इसके साथ ही  साथ ही साथ सामाजिक जीवन आदर्श आचार संहिता के पालन का दिशा निर्देश भी है। शांति पूर्ण ढंग से जीवन जीने की गाइडलाइन भी कह सकते हैं।

# ॐ सर्वे भवन्तु सुखिन: #

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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