श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है पितृ दिवस पर आपकी एक भावप्रवण कविता “# बात ही कुछ और है #”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 87 ☆
☆ # बात ही कुछ और है # ☆
अंबर पर छाई घटा ये घनघोर है
दीवाने बादलों पर किसका ज़ोर है
ना जाने किसको तरसा दे
ना जाने किस पर बरसा दे
तुम भी आ जाओ
वर्षा में खो जाओ
पहले प्यार में डूबने की
या पहले बारिश में भीगने की
बात ही कुछ और है
वर्षा की ऋतू आई है
संग रिमझिम फुहारें लाई है
बूँद बूँद में प्यास है
धरती से मिलने की आस है
वसुंधरा झूम रही है
फुहारों को चूम रही है
इस अनोखे मिलन की तो
बात ही कुछ और है
पेड़ पौधे, चर-अचर
सब उन्माद में डूबे हैं
बूंदों को आगोश में लेकर
प्रणय में भीगे हैं
कण कण में तरूनाई आई है
वसुंधरा पर हरियाली छाई है
जंगल में नाचते मयूर की तो
बात ही कुछ और है
तुम भी अब दौड़कर आ जाओ
रिमझिम बारिश में आग लगा जाओ
तुम्हारा वो बारिश में भीगना
कूदकर पानी मुझपर उड़ाना
नज़रों से मुझपर बिजली गिराना
हाथ छुड़ाकर भाग जाना
भीगी साड़ी में वो सिमट जाना
बिजली के कड़क से लिपट जाना
सच कहूं, तुम्हारी भीगी काया की तो
बात ही कुछ और है /
© श्याम खापर्डे
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