प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण कविता “’कौन है जिसको न भाता आगमन बरसात का…”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा 88 ☆ ’’कौन है जिसको न भाता आगमन बरसात का…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
कौन है जिसको न भाता आगमन बरसात का
सब को होता गर्व एक सज्जन स्वजन के साथ का
वर्षा का मौसम मिटा देता सकल संताप दुख
लगता है संसार आतुर है नई शुरुआत का
बढ़ती जाती ग्रीष्म में हर दिन सतत रवि की तपन
एक दिन आता , ना होता ताप जब बिल्कुल सहन
निरंतर बहता पसीना सूखता फिर फिर बदन
है कठिन कह कर बताना उन विकल हर पल का
सूख जाते पेड़ पौधे सूख जाती है धरा
सूख जाती वनस्पतियां दिखता न पत्ता कोई हरा
सारा वातावरण दिखता रुखा झुलसा अधमरा
रूप रंग हो जाता बद रंग सब शहर देहात का
लू लपट चलती भयानक लोगों को लगता है डर
धूप से बचने सभी जन बंद कर लेते हैं घर सिर्फ
कुछ मजदूर ही हैं धूप में आते नजर सिर्फ
एक गमछा लपेटे शायद बस दो हाथ का
देख जग की दुर्दशा यह, दौड़ते घनश्याम हैं
हवा आंधी पानी की बौछार लेकर साथ में
दुखियों की रक्षा के हित मन में बटोरे कामना
बांटने जल सब को उनकी चाह के अनुपात में
कौन है जिसको न भाता आगमन बरसात का
लाभ मिलता है सभी को सज्जनों के साथ का
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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