डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है बेटियों पर आधारित एक भावपूर्ण रचना “बेटियाँ…..”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य – # 19☆
☆ बेटियाँ….. ☆
है अनन्त आकाश बेटियां
उज्ज्वल प्रखर प्रकाश बेटियां
और धरा सी जीवनदायी
जीवन का मधुमास बेटियां।
बिटिया से घर-आंगन महके
बिटिया गौरैया सी चहके
सबको सुख पहुंचाती बिटिया
स्वयं वेदनाओं को सह के।
बिटिया दर्दों का मरहम है
सृष्टि की कृति सुंदरतम है
निश्छलता करुणा की मूरत
मोहक मीठी सी सरगम है।
बिटिया है पावन गीता सी
सहनशील है माँ सीता सी
नवदुर्गा का रूप बेटियाँ
निर्मल मन पावन सरिता सी।
बिटिया घर की फुलवारी है
बिटिया केशर की क्यारी है
चंदन की सुगंध है बिटिया
बिटिया शिशु की किलकारी है।
बिटिया है आँखों का पानी
कोयल की मोहक मृदु वाणी
बिटिया पहली किरण भोर की
गोधूलि बेला, सांझ सुहानी।
संस्कारों की खान बेटियां
दोनों कुल का मान बेटियां
जड़-चेतन सम्पूर्ण जगत का
ज्ञान ध्यान विज्ञान बेटियां।
बिटिया चिड़ियों का कलरव है
बिटिया जीवन का अनुभव है
माँ की ममता प्यार पिता का
बिटिया में सब कुछ सम्भव है।।
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014