डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम गीत – आओ तो केवल तुम आओ!…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 96 – गीत – आओ तो केवल तुम आओ!…
आओ तो केवल तुम आओ
मत सपनों की भीड़ लगाओ।
संवादी सपने जब आते
यादों की बाती उकसाते
दिया नहीं घावों पर मरहम
किंतु नमक तो मत छिड़काओ।
आओ तो केवल तुम आओ
सपनों की तासीर गर्म है
अश्क आंख का देह धर्म है
विषम भूमि में क्या उपजेगा
मत पानी में आग लगाओ।
आओ तो केवल तुम आओ
आग नाग का एक वंश है
एक दाह है एक दंश है
सुध बुध खो दे
कोई ऐसा राग सुनाओ ।
आओ तो केवल तुम आओ।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
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