श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण एवं विचारणीय “तन्मय दोहे – गिरगिट जैसे सिद्ध…1”)

☆  तन्मय साहित्य # 141 ☆

☆ तन्मय दोहे – गिरगिट जैसे सिद्ध… 1 ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

जब से मेरे गाँव में, पहुँचे शहरी भाव।

भाई-चारे  प्रेम के, बुझने लगे अलाव।।

 

भूखों  का  मेला  लगा,  तरह – तरह  की  भूख।

जर,जमीन,यश, जिस्म की, जैसा जिसका रूख।।

 

खादी तन पर डालकर, बगुले  बनते हंस।

रच प्रपंच मिल कर रहे, लोकतंत्र विध्वंस।।

 

धर्म-पंथ के नाम पर, अलग-अलग है सोच

लोकतंत्र  लँगड़ा रहा, पड़ी  पाँव में  मोच।

 

वेतन-भत्ते सदन में, सह -सम्मति से पास।

दाई – जच्चा  वे स्वयं, फिर क्यों रहें उदास।।

 

जिनके ज्यादा अंक है, अपराधों में खास।

है उनके ही   हाथ में,  प्रजातंत्र  की  रास।।

 

इक्के-दुक्के रह गए, खादी वाले लोग।

सूट-बूट के भाग्य में, राजनीति संयोग।।

 

हाकिम का आदेश है, नहीं मचाएं शोर।

मिट जाएगा तम स्वयं, हो जाएगी भोर।।

 

रोज खबर अखबार के, प्रथम पृष्ठ पर खास।

द्विगुणित गति से हो रहा, चारों ओर बिकास।।

 

रावण को यह ज्ञात था, निश्चित मृत्यु विधान।

किंतु  छोड़ पाया  नहीं, सत्ता  का  अभिमान।।

 

बारिश में अमरत्व का, गाते झींगुर गान।

है जीवन इक रात का, हो इससे अंजान।।

 

तू-तू ,मैं-मैं  की हवा, संसद क्रीड़ागार।

भूखे – नंगों का यहाँ, शब्दों से  शृंगार।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

अलीगढ़/भोपाल   

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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