श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत हैं आपकी “एक बुन्देली पूर्णिका”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 130 ☆
☆ एक बुन्देली पूर्णिका ☆ श्री संतोष नेमा ☆
अब साँचो सो प्यार कितै है
माँ को प्रेम दुलार कितै है
पलना घर में पलते बच्चा
बचपन को संस्कार कितै है
धरम पै करते चोट अधर्मी
इनको बंटाधार कितै है
गुडिमुड़ी से हो रये सबरे
इनमें अब फुफकार कितै है
दुख में देखो परे अकेले
पहलऊं सो व्यबहार कितै है
फाँसी लगा किसान मरत हैं
अब हितुआ सरकार कितै है
हरई काम में पूछत तुम्हरो
“संतोष” अब आधार कितै है
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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