श्रीमति विशाखा मुलमुले
(श्रीमती विशाखा मुलमुले जी हिंदी साहित्य की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं. आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है उनकी रचना रंगरेज़ . अब आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में पढ़ सकेंगे. )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 7 – विशाखा की नज़र से ☆
☆ रंगरेज़ ☆
तुम बन गए हो ,
मेरी यादों में पपड़ी के परत से
बन गई हूँ मैं रंगरेज़,
रंगती हूँ, यादों को
मनचाहे रंग से ।
ढकती हूँ तुम्हे हर बार,
कुरेदकर गहरे रंग से
कि मेरे जीवन का हल्का रंग,
न शामिल हो,
तेरे गहरे रंग में ।
कल, आज और कल को,
मैंने रंगा है सुनहरे रंग से
तुम थे शामिल,
उथले कभी गहरे नीले रंग से ।
लगी मोर के पंख सी
मेरी यादें,
इन सारे रंगों से
सजा लिया इसे कभी,
अपने मुकुट पर
या रच दिया “मेघदूतम”
बन कालिदास यादों के पंख से
© विशाखा मुलमुले
पुणे, महाराष्ट्र