श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 133 ☆

☆ ‌ मानव जीवन में हाथों उपयोगिता ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

हिंदी भाषा में एक  कहावत है कि – हाथ कंगन को आरसी क्या पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या?  जो मानव जीवन में हाथ की महत्ता दर्शाती है ।

सूरदास जी का यह कथन भी हाथ की महत्ता समझाता है जिसके पीछे विवशता, खीझ, तथा चुनौती का भाव स्पष्ट दिखाई देता है।

हाथ छुड़ाये जात हो, निर्बल जानि के मोय।

हृदय से जब जाओ, तो सबल जानूँगा तोय।। 

वैसे तो जीव जब योनियों में पलता है, तो  उसका आकार प्रकार योनि गत जीवन व्यवहार वंशानुगत गुणों के आधार पर तय होता है और शारीरिक संरचना  की बनावट अनुवांशिक गुणों के आधार पर तय होती है। जीव जगत के अनेकों भेद तथा वर्गीकरण है। पौराणिक मान्यता केअनुसार चौरासी लाख योनियां है, जिसमें जलचर, थलचर, नभचर, कीट पतंगों तथा जड़ चेतन आदि है। सबकी शारीरिक बनावट अलग-अलग है। रूप रंग का भी भेद है। हर योनि के जीव की आवश्यकता के अनुसार शारिरिक अंगों का  विकास हुआ है। इसी क्रम में मानव शरीर में हाथ का विकास हुआ, जिसे भाषा साहित्य के अनुसार हस्त, भुजा, पाणि, बाहु, कर, आदि समानार्थी नाम से संबोधित करते हैं।

चक्र हाथ में धारण करने के कारण भगवान विष्णु का नाम चक्रधर तथा चक्रपाणि पड़ा तथा हमारे ‌षोडस संस्कारों में एक प्रमुख संस्कार पाणिग्रहण संस्कार भी है जिससे हमारे जीवन की दशा और दिशा तय होती है। आशीर्वाद की मुद्रा में उठे हुए हाथ जहां व्यक्ति के भीतर अभयदान के साथ प्रसंन्नता प्रदान करता है वहीं दण्ड देने के लिए सबल के उठे हाथ  आश्रितों के हृदय में सुरक्षा का भरोसा दिलाते हैं।

हमारी पौराणिक मान्यता के अनुसार हाथ की बनावट तथा उसकी प्रकृति के बारे में हस्त रेखाएं बहुत कुछ कहती हैं, पौराणिक मान्यताओं अनुसार

कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती।

करमूले स्थ‍ितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्।।

अर्थात् हाथ के अगले भाग में लक्ष्मी, मध्य में  विद्या की देवी सरस्वती तथा कर के मूल में सृष्टि सृजन कर्ता ब्रह्मा का निवास होता है इस लिए प्रभात वेला में उठने के पश्चात अपना हाथ देखने से इंसान मुखदोष दर्शन से बच जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हाथ में ही सूर्य, चंद्रमा, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु आदि नवग्रहों के स्थान  निर्धारित है, जिसके उन्नत अथवा दबे हुए स्थान देख कर व्यक्ति जीवन के भूत भविष्य वर्तमान के घटनाक्रम की भविष्यवाणी की जाती है तथा नवग्रहों की शांति के लिए सबेरे उठ कर हमारे शास्त्रों में नवग्रह वंदना करने का विधान है, ताकि हमारा दिन मंगलमय हो।

ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च।

गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु।

हाथ जहां हमारे दैनिक जीवन की नित्य क्रिया संपादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं वहीं हाथ लोकोपकार करते हुए, सबलों से निर्बलों की रक्षा करते हुए उद्धारक की भूमिका भी निभाते हैं, अपराधी को दंडित भी करते हैं। उसमें ही हस्त रेखा का सार छुपा बैठा है।

व्यक्ति  के हाथ के मणिबंध से लेकर उंगली के पोरों तथा नाखूनों की बनावट व रेखाएं देखकर इंसान के जीवन व्यवहार की भविष्यवाणी एक कुशल हस्तरेखा विशेषज्ञ कर सकता है। हाथों का महत्व  मानव जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। तभी किसी विद्वान का मत है कि हाथों की शोभा दान देने से है, कंगन पहनने से नहीं ।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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