श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 43 – मनोज के दोहे ☆
1 पावस
पावस की बूँदें गिरीं, हर्षित फिर खलिहान।
धरा प्रफुल्लित हो उठी, हरित क्रांति अनुमान।।
2 पपीहा
गूँज पपीहा की सुनी, बुझी न उसकी प्यास।
आम्र कुंज में बैठकर, स्वाति बूँद की आस।।
3 मेघ
मेघ गरज कर चल दिए, देकर यह संदेश ।
बरसेंगे उस देश में, कृष्ण भक्ति -अवधेश।।
4 हरियाली
शिव की अब आराधना, हरियाली की धूम।
काँवड़ यात्रा चल पड़ी, आया सावन झूम।।
5 घटा
छाई सावन की घटा, रिमझिम पड़ी फुहार।
भीगा तन उल्हास से, उमड़ा मन में प्यार।।
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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