हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सकारात्मक सपने – #22 – भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई ☆ सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है  “भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई”।  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

 

Amazon Link for eBook :  सकारात्मक सपने

 

Kobo Link for eBook        : सकारात्मक सपने

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 22 ☆

 

☆ भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई 

 

नये नये विकास मंत्री विकास के गुर सीखने  अमेरिका गये, स्वाभाविक था कि वहां के विकास मंत्री ने उनका स्वागत सत्कार किया,मंत्री जी ने उनसे कहा कि वे उन्हें विकास के गुर सिखा दें, उन्होंने अमेरिकन मंत्री को आश्वस्त किया कि जो भी वे सिखायेंगे, उसे शत प्रतिशत तरीके से क्रियान्वित करके दिखायेंगे. अमेरिकन मंत्री  आग्रह पूर्वक उन्हें अपने घर ले गये,नदी के तट पर बने उनके शानदार बंगले की  शानशौकत देखकर  मंत्री जी ने इस सबका राज जानना चाहा, तो अमेरिकन मंत्री  उन्हें नदी की ओर खुलने वाली खिड़की की तरफ ले गये, खिड़की से बाहर नदी दिखाते हुये उन्होंने पूछा , वह पुल देख रहे हैं ? जबाब मिला जी हाँ ! तो अमेरिकन मंत्री जी ने शानदार बंगले का राज बताया बस २ प्रतिशत एडजस्टमेंट.

कोई दो बरस बाद अमेरिकन मंत्री भारत यात्रा पर आये इस बार हमारे मंत्री जी उन्हें अपनी कोठी पर ले गये, कोठी की लाजबाब रौनक देखकर अमेरिकन मंत्री जी ने इसका राज पूछा, तो हमारे मंत्री जी ने यमुना के तट पर बनी अपनी कोठी की यमुना की ओर खुलने वाली खिड़की खोली, पूछा वह पुल देख रहे हैं ? अमेरिकन मंत्री जी ने आंखें मली, चश्मा साफ किया, पर फिर भी जब उन्हें कुछ नही दिखा तो उन्होंने कहा कि पुल तो कहीं नही दिख रहा है ! मंत्री जी ने मुस्करा कर जबाब देते हुये कोठी का राज बताया १०० प्रतिशत एडजस्टमेंट…

देश में व्याप्त भ्रष्टाचार शायद इस चुटकुले से स्पष्ट हो.

भ्रष्ट व्यवस्था के पोषक बड़े विशेष अंदाज में कहते हैं अरे, काम हम तुम कहां करते हैं ? सारा काम तो गांधी जी ही करवाते हैं, उनका आशय नोट पर मुद्रित गांधी जी की तस्वीर से होता है.

१८० देशो के बीच ट्रास्परेसी इंटरनेशनल ने जो रैंकिग की है उसके अनुसार भारत को १० में से ३.४ अंक देते हुये भ्रष्टाचार में ८४ वें स्थान पर रखा गया है  ..सेवानिवृत  केंद्रीय विजिलेंस कमिश्नर प्रत्यूश सिंहा ने कहा है कि लगभग ३० प्रतिशत भारतीय भ्रष्ट हैं, किंतु  आज भी  २० प्रतिशत लोग भ्रष्टाचार से मुक्त हैं. शेष ५० प्रतिशत अधबीच में हैं.

राजीव गांधी ने कहा था कि विकास हेतु केंद्र से दिया गया मात्र १५ प्रतिशत धन ही वास्तविक विकास कार्यों में लग पाता है शेष भ्रष्ट राजनैतिज्ञों, अफसरशाही , पत्रकारों, ठेकेदारो, व भ्रष्ट व्यवस्था में गुम हो जाता है.स्वयं पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी ” भ्रष्टाचार को स्वीकार करते हुये कहा था ” घी कहां गया खिचड़ी में “.

अनेक विदेशी कंपनियां भारत में उद्योग खोलने आती हैं पर हमारी राजनैतिक भ्रष्ट व्यवस्था, तथा ब्युरोक्रेसी, मल्टिपल विंडो चैकिंग उन्हें ऐसा पाठ पढ़ाती हैं कि वे अपने साजो सामान समेट कर भाग खड़ी होती हैं. महाराष्ट्र की दाभौल नेप्था विद्युत उत्पादन परियोजना सहित अनेक विदेशी कंपनियो व निवेशको का यही हश्र हुआ है. सैनिक साजो सामान की खरीदी में विदेशी कंपनियों से लेनदेन के अनेक प्रकरण सुर्खियों में रहे हैं.

आज बढ़ती आबादी और भ्रष्टाचार,दोनों ही तो देश की सबसे बड़ी समस्यायें हैं. हमेशा से ही समाज किसी न किसी के डर से ही नियम कायदो का परिपालन करता रहा है तुलसीदास ने लिखा भी है ” भय बिन होई न प्रीति “.  एक समय था जब लोग “उपर पहुंचकर परमात्मा को मुंह दिखाना है” इस तरह ईश्वर के डर से,  या राजा के कठोर दण्ड के डर से, या समाज से निकाल दिये जाने के डर से, या सत्य की राह पर चलते हुये स्वयं अपने आप से डरकर नियमानुसार काम करते थे, पर अब जितनी ज्यादा नैतिक शिक्षा पढ़ाई जा रही है नैतिकता का उतना ही ह्रास हो रहा है.धर्म अब लड़ने मारने और सामूहिक प्रतिष्ठा का विषय बन चुका है. राजा का डर रहा नही, लोग जान गये हैं कि कम या ज्यादा कीमत हो सकती है पर वर्तमान भौतिकवादी संग्रह के युग में शासन का हर प्रतिनिधि  बिकाऊ है, स्वयं अपने आप से अब आदमी डरता नही है वह वर्तमान का भौतिक सुख भोगना चाहता है, उसे मरकर अल्लाताला के कब्र  खोलने तक का इंतजार मंजूर नही है.

जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी पाठशाला हमारे पुलिसथाने, पटवारी से प्रारंभ  विभिन्न सरकारी कार्यालय  हैं.हमारे टूरिस्ट विदेशी भाईयों के लिये दर्शनीय स्थानो की सिक्यूरटी, उनकी यात्रा के दौरान, उनके रुकने, खाने पीने की व्यवस्थाओ के स्थानो के प्रभारी, विदेशियों की खरीददारी के दौरान उन्हें लूट लेने के अंदाज में बैठे हमारे शाप कीपर्स आदि सभी शार्ट कट का थोड़ा थोड़ा पाठ सिखा कर भ्रष्ट व्यवस्था और “सब चलता है” की शिक्षा उन्हें दे ही देते हैं.   उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार राजधानियों में मंत्रालयों, सचिवालयों, विभाग प्रमुखों जैसे सफेद झक लोगों द्वारा वातानुकूलित कमरों में खादी के पर्दो के भीतर होता है.इस तरह खाकी और खादी की वर्दी वाले भ्रष्टाचार की द्विस्तरीय शालाओ के शिक्षक हैं. अब हमारे विदेशी मेहमानो को यदि भ्रष्टाचार का क्रैश  कोर्स कराना हो उन्हें इन दफ्तरों का कोई  काम एक निश्चित समय सीमा के साथ सौंप दिया जावे, यदि वे काम करके आ जाते हैं तो समझ लें कि वे भ्रष्टाचार के क्रैश कोर्स में उत्तीर्ण हैं. क्योंकि इन कार्यालयों से काम निकालने का और कोई तरीका अब तक खोजा नही जा सका है.

इन दुरूह सामाजिक स्थितियो में जब सबने भ्र्ष्टाचार के सम्मुख घुटने टेक दिये हैं, युवा ही  रोशनी की किरण हैं. देश हित में हमें यह लड़ाई जीतनी ही होगी.

 

© अनुभा श्रीवास्तव