श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण एवं विचारणीय अप्रतिम रचना “अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो…”)

☆  तन्मय साहित्य # 144 ☆

☆ अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो

शब्द अटपटे ये, समझो।

 

साँसों का विज्ञान अलग

टिका हुआ साँसों पर जग

प्रश्न  जिंदगी के बूझो

अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो..

 

पाना हैं मीठे फल तो

स्वच्छ रखें हम जल-थल को

आम-जाम आँगन में बो

अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो..

 

मन भारी जब हो जाए

पीड़ा सहन न हो पाए

बच्चों जैसा जी भर रो

अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो..

 

कितना खोटा और खरा

अपने भीतर झाँक जरा

क्यों देखे इसको-उसको

अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो..

 

संसद के गलियारों में

अपने राजदुलारों में

खेल चल रहा है खो-खो

अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो..

 

गर अधिकार विशेष मिले

भूलें शिकवे और गिले

दूजों को उनका हक दो

अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो..

 

बहुत जटिल जीवन अभिनय

मन में रखें न संशय-भय

अभिनव कला-मर्म सीखो

अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो..।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

अलीगढ़/भोपाल   

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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