श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती पर रचित दोहे “तुलसी के दोहे अमर…”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 132 ☆
☆ तुलसी के दोहे अमर… ☆ श्री संतोष नेमा ☆
(गोस्वामी तुलसीदास जी की जयन्ती पर सादर समर्पित)
रामचरित मानस रची, देकर नव संस्कार
राह दिखा कर धरम की, किया बड़ा उपकार
बनें चरित्रवान सभी, चलें धरम की राह
देकर शिक्षा नीति की, मन में भरा उछाह
घर घर तक पहुँचा दिया, राम कथा का सार
सहज सरल अवधी लिखी, करके नव विस्तार
तुलसी के दोहे अमर, करते जो उजियार
काम, क्रोध, मद लोभ पर, तेज कलम की धार
रोम रोम मेँ रम गए, जिनके प्रभु श्री राम
तुलसी बाबा आपको, सादर करें प्रणाम
रामचरित मानस मिली, मिला सम्यक ज्ञान
सबके हिय “संतोष” है, कर रामायण गान
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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