श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है आपकी श्रवण मास पर आधारित रचना “सोहल श्रृंगार कर…”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 134 ☆
☆ कविता सोहल श्रृंगार कर…
–*–
कारी- कारी बदरा, घिर आए सजना।
सोहल श्रृंगार कर, आई तेरे अंगना ।।
–*–
नैनो में कजरा, बालों में गजरा,
मांग सिंदुरी, हाथों में कंगना,
बिजूरी बनकर, चमकी तेरे अंगना।।
–*–
अमुवा की डाली, कोयलिया काली,
झूम के गाती, राग मल्हारी,
बन कर पाहुन, आई तेरे अंगना ।।
–*–
वर्षा का पानी, रुत हैं सुहानी,
प्रेम दीवानी, बनती कहानी,
रिमझिम बरसी, बादल अंगना ।।
–*–
गरज – गरज कर, बादल बरसे,
पिया मिलन को, गोरी तरसे,
लेके नैनों में सपना, डोलू तेरे अंगना।।
–*–
पांवों की पायल, रुन झुन साजे,
धक धक जियरा, तन में बाजें,
प्रीत में भीगी, निहारु तेरे अंगना ।।
–*–
मांथे में बिंदिया, होटो पे लाली,
धानी चुनरियां, सर पे डाली,
मांग सिंदूरी, सजाऊं तेरे अंगना ।।
–*–
हाथों में गागर, छलका सागर,
प्रीत की डोरी, ढाई आखर,
बन के जोगनियां, बैठी तेरे अंगना ।।
–*–
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈