श्री अरुण श्रीवास्तव
(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज प्रस्तुत है आपके एक मज़ेदार व्यंग्य श्रंखला “प्रशिक्षण कार्यक्रम…“ की अगली कड़ी ।)
☆ व्यंग्य # 43 – प्रशिक्षण कार्यक्रम – भाग – 3 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆
चाय पूरी दुनिया में पी जाती है, इंग्रेडिएंट्स अलग अलग हो सकते हैं, टाइमिंग और फ्रीक्वेंसी भी व्यक्ति दर व्यक्ति बदलती है, चाय के लिए इश्क और ज़ुनून भी कम या ज्यादा हो सकते हैं. अंग्रेजों को अंग्रेजी और चाय हमने वापस ले जाने नहीं दी, बिना चाय के विदाई दी0, स्वतंत्रता दिवस मनाया और फिर चाय पी. जो एक भाषा अंग्रेजी को अंग्रेजियत में बदलकर एक हाथ में पकड़े थे उन्होंने दूसरे हाथ से हाई टी इंज्वाय की, उन्होंने भी वीआईपी स्टेटस के साथ इंडिपेंडेंस डे सेलीब्रेट किया.
हम बैंकर भी, बैंक खुलने के एक घंटे के अंदर, चाय पीना अपरिहार्य मानते हैं. जब काउंटर पर कस्टमर से चेक लेकर टोकन पकड़ाते थे तो समझदार कस्टमर कहते थे, सर,चाय के एक दो घूंट ले लीजिए फिर हमारा चेक पोस्ट कर दीजिएगा. तब उस ग्राहक की आत्मा में छुपी हुई मानवीयता के दर्शन हो जाते थे. पर प्रशिक्षण काल में सबसे ज्यादा चाय की ज़रुरत, पोस्ट लंच के पहले सेशन के बाद होती थी .ये ऑक्सीजन की ज़रूरत से कम नहीं होती और इस चाय को पीने से, नींद को तरसते सुस्त प्रशिक्षुओं में भी चेतना आ जाती थी. इसका समय लगभग 3:30 सायंकाल होता था. ज्ञान से लबरेज या ज्ञान के प्रति अनास्थावान आत्मन भी सब कुछ भूलकर चाय और सिर्फ चाय की चर्चा, चाय पीते पीते करते थे. इस चाय जनित ऊर्जा से प्रशिक्षण सत्र का अंतिम सेशन बड़ी सरलता से निपट जाता था और प्रशिक्षण का पहला दिन अपना विराम पाता था. दिन की अंतिम सर्व की जाने वाली चाय के घूंटों के साथ प्रशिक्षु, अध्ययन के अनुशासन से मुक्त होते हैं और डिनर के पहले की एक्टिविटी, अपनी रुचि, शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार तय कर तदनुसार व्यस्त हो जाते थे. भ्रमण प्रेमी नगर की तफरीह में, थके हुये, आराम करने, खिलाड़ी टेबल टेनिस और कैरम खेलने, चर्चा प्रेमी वर्तमान परिवेश पर चर्चाओं में मशगूल हो जाते थे. हरिवंश राय बच्चनजी की मधुशाला सामान्यतः पहले दिन बंद रहा करती थी क्योंकि समूह नहीं बन पाते थे, बाकी अपवाद तो हर सिद्धांत और नियम के होते हैं जो जिक्र से ज्यादा समझने की बात होती है.
रात्रिकालीन भोजन के पश्चात, सफर की थकान और नींद की कमी की तलाश, आरामदायक बिस्तर तलाशती थी जो हमारे प्रशिक्षण केंद्र सुचारू रूप से प्रदान करते थे. प्रशिक्षु अपनी नींद का कोटा पूरा करते थे, सपने जिनका कोई लक्ष्य होता नहीं, आते थे. मोबाइल उस जमाने में होता नहीं था तो परिजनों से बात भी होती नहीं थी, शायद सपने इस कमी को पूरा करते हों. प्रशिक्षण केंद्र की पहली रात में सपने फिल्म तारिकाओं के नहीं, अपनोँ के नाम ही होते हैं और यह वह मापदंड है जो हमारे जीवन में परिवार की महत्ता को प्रतिष्ठित करता है. सुबह, फिर बेड टी के साथ आती और इसके साथ ही दूसरे दिन की शुरुआत होती थी.
यह प्रशिक्षण सत्र जारी रहेगा, धन्यवाद…!
क्रमशः…
© अरुण श्रीवास्तव
संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈