श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है “संतोष के दोहे… रक्षा बंधन”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 133 ☆
☆ संतोष के दोहे… रक्षा बंधन ☆ श्री संतोष नेमा ☆
राखी पावन पर्व है, धागे का त्यौहार
सजी कलाई प्रेम से, मिला बहिन का प्यार
रक्षा का बंधन बंधे, होता जो अनमोल
बहिन सुरक्षित हो सदा, भाई के यह बोल
भाई को आशीष दे, करती बहिन पुकार
ईश्वर से यह कामना, सुखी रहे परिवार
खुशियाँ लेकर आ गया, राखी का यह पर्व
भाई पर करतीं बहिन, सबसे ज्यादा गर्व
सावन सुखद सुहावना, सजे सावनी गीत
रक्षाबंधन,कजलियाँ, बांट रहे हैं प्रीत
भाई की यह कामना, मिले बहिन का प्यार
बहिन हमेशा खुश रहे, ईश्वर से दरकार
दिखने में दो तन दिखें, बहे एक सा खून
पावन राखी पर्व पर, खुशियाँ होतीं दून
इंद्रधनुष सी राखियाँ, भरतीं मन उत्साह
प्रेम बढ़ाती परस्पर, रिश्तों की यह राह
दे शीतलता चाँद सी, भ्रात-भगिनि का प्यार
दिल में भी “संतोष”हो, बढ़े प्रेम व्यबहार
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
सर्वाधिकार सुरक्षित
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈