डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है बेटियों पर आधारित एक भावपूर्ण रचना “मेरे पिता …..”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य – # 20☆
☆ मेरे पिता ….. ☆
सजग साधक
रत, सुबह से शाम तक
दो घड़ी मिलता नहीं
आराम तक
हम सभी की दाल-रोटी
की जुगत में
जो हमारी राह के कांटे
खुशी से बीनता है,
वो मनस्वी कौन?
वो मेरे पिता है।
सूर्य को सिर पर धरे
गर्मी सहे जो
और जाड़ों में
बिना स्वेटर रहे जो
मौसमों के कोप से
हमको बचाते
बारिशों में असुरक्षित
हर समय जो भींगता है,
वो तपस्वी कौन?
वो मेरे पिता है।
स्वप्न जो सब के
उन्हें साकार करने
और संशय, भय
सभी के दूर हरने
संकटों से जूझता जो
धीर और गंभीर
पुलकित, हृदय में
नहीं खिन्नता है,
वो यशस्वी कौन?
वो मेरे पिता है।
जो कभी कहता नहीं
दुख-दर्द अपना
घर संवरता जाए
है बस एक सपना
पर्व,व्रत, उत्सव
मनाएं साथ सब
जिसकी सबेरे – सांझ
भगवन्नाम में तल्लीनता है,
वो महर्षि कौन?
वो मेरे पिता है।
मौन आशीषें
सदा देते रहे जो
नाव घर की
हर समय खेते रहे जो
डांटते, पुचकारते, उपदेश देते
सदा दाता भाव
मंगलमय,विनम्र प्रवीणता है,
वो दधीचि कौन?
वो मेरे पिता हैं।
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014