श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष पर एक भावप्रवण गीत “लाल किले पर खड़ा तिरंगा….”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 46 – गीत – लाल किले पर खड़ा तिरंगा….🇮🇳 ☆
लाल किले पर खड़ा तिरंगा,
बड़े शान से लहराता।
आजादी की गौरव गाथा,
स्वयं देश को बतलाता।
त्याग और बलिदान कहानी ,
जन-जन तक है पहुँचाता।
गांधी जी का सत्याग्रह हो,
चन्द्रशेखर का शंखनाद।
भगत सिंह का फाँसी चढ़ना ,
नेता जी का क्रांतिनाद।
अहिंसावाद क्रांतिवाद का ,
फर्क नहीं कुछ बतलाता ।
सावरकर की अंडमान का ,
चित्र उभरकर छा जाता।
विस्मिल तिलक खुशीराम का ,
पन्ना पुनः पलट जाता ।
सबने मिलकर लड़ी लड़ाई,
गौरव गाथा कह जाता।
कितने वीर सपूतों ने हँस,
फाँसी का फंदा झूला ।
कितनों ने खाईं हैं गोली ,
ना उपकारों को भूला ।
अमर रहे बलिदान सभी का,
इसका मतलब समझाता ।
सबसे ऊपर केसरिया रंग ,
बलिदानी गाथा लिखता।
बीच श्वेत रंग लिए हुए वह,
शांतिवाद जग को कहता।
हरा रंग वह हरितक्राँति को,
पावन सुखद बना जाता ।
कीर्ति चक्र को बीच उकेरा,
प्रगतिवाद का है दर्शन।
उन्नति और विकास दिशा में ,
हित सबका है संवर्धन।
तीन रंग से सजा तिरंगा,
यह संदेश सुना जाता।
अमरित पर्व महोत्सव आया,
घर घर झंडे लहराना ।
सबको आजादी का मतलब ,
प्रेम भाव से समझाना ।
छोड़ सभी सत्ता का लालच,
कर्तव्यों को बतलाता ।
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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