प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण कविता “नारी…”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा 97 ☆ “नारी” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
नव सृजन की संवृद्धि की एक शक्ति है नारी
परमात्मा औ “प्रकृति की अभिव्यक्ति है नारी”
परिवार की है प्रेरणा, जीवन का उत्स है
है प्रीति की प्रतिमूर्ति सहन शक्ति है नारी
ममता है माँ की साधना, श्रद्धा का रूप है
लक्ष्मी, कभी सरस्वती, दुर्गा अनूप है
कोमल है फूल सी, कड़ी चट्टान सी भी है
आवेश, स्नेह, भावना, अनुरक्ति है नारी
सहधर्मिणी, सहकर्मिणी सहगामिनी भी है
है कामना भी, कामिनी भी, स्वामिनी भी है
संस्कृति का है आधार, हृदय की पुकार है
सावन की सी फुहार है, आसक्ति है नारी
नारी से ही संसार ये, संसार बना है
जीवन में रस औ” रंग का आधार बना है
नारी है धरा, चाँदनी अभिसार प्यार भी
पर वस्तु नही एक पूर्ण व्यक्ति है नारी
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈