डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज  प्रस्तुत है समसामयिक विषय पर आधारित आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य ‘एक और त्रिशंकु’। इस अतिसुन्दर व्यंग्य रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 157 ☆

☆ व्यंग्य – एक और त्रिशंकु

पुराणों में एक कथा राजा त्रिशंकु की है जिन्हें ऋषि विश्वामित्र ने सशरीर स्वर्ग भेज दिया था। उन्हें इंद्र ने वापस ढकेला तो विश्वामित्र ने पृथ्वी और स्वर्ग के बीच उनके लिए अलग स्वर्ग का निर्माण कर दिया और वे वहीं लटके रह गये।

दूसरी कथा युधिष्ठिर की है। आयु पूरी कर जब वे दूसरे लोक गये तो उन्हें अश्वत्थामा की मृत्यु के संबंध में मिथ्याभाषण के दंडस्वरूप कुछ देर के लिए नरक जाना पड़ा। वहाँ नरकवासियों ने प्रार्थना की कि उन्हें कुछ देर और वहाँ रखा जाए क्योंकि उनको छू कर आने वाली हवा से उन्हें सुख मिल रहा था।

अब नेताजी की बात। छः बार दल-बदल करने और छत्तीस अपराधों में नामित होने के बाद भी स्वच्छंद विचरते नेताजी अचानक संसार से मुक्त हुए तो सीधे नरक पहुँचे। नेताजी दुखी हुए क्योंकि उन्हें पूरी उम्मीद थी कि उनके अपराधों के बावजूद उन्हें स्वर्ग में प्रवेश मिल जाएगा, जैसे वे दल बदल कर हर कैबिनेट में घुसने में सफल होते रहे थे। लेकिन ऊपर उनकी कोशिशें कारगर नहीं हुईं।

नेताजी के आने से एक गड़बड़ यह हुई कि नरक में अचानक भयानक दुर्गंध फैलने लगी। थोड़ी ही देर में नरकवासी उस दुर्गंध से त्रस्त हो गये। लोग अचेत होकर गिरने लगे। खोजने पर पता चला कि वह दुर्गंध नेताजी की आत्मा से निर्गमित हो रही थी।

दुर्गंध को रोकने के सारे प्रयास विफल होने पर तय हुआ कि नरकवासियों के हित में नेताजी को वापस धरती पर भेज दिया जाए, जहाँ वे आत्मा के ही रूप में कुछ दिन रहें। दुर्गंध कुछ कम होने पर उन्हें पुनः नरक में खींचने पर विचार होगा।

दुर्भाग्य से यह खबर पृथ्वी पर लीक हो गयी और वहाँ खलबली मच गयी। लोग मन्दिर- मस्जिद में इकट्ठा होने लगे। प्रार्थना के द्वारा ऊपर संदेश भेजा गया कि नेताजी से बमुश्किल-तमाम मुक्ति मिली है, अतः उन्हें किसी भी सूरत में धरती पर न भेजा जाए। यह भी कहा गया कि नेताजी खुराफाती स्वभाव के हैं, अतः उनकी आत्मा यहाँ किसी के शरीर में जबरन घुसकर उसकी आत्मा को अपने काबू में कर लेगी और उसे अपने मंसूबों के हिसाब से चलाने लगेगी। लोगों ने प्रभु से यह भी कहा कि यदि नेताजी की आत्मा को पृथ्वी पर भेजा गया तो लोगों का भरोसा ईश्वर पर से उठ जाएगा और उनकी पूजा-अर्चना बन्द हो जाएगी।

यह संदेश ऊपर पहुँचा तो वहाँ सभी चिन्ता में पड़ गये। विचार-विमर्श के बाद तय हुआ कि फिलहाल नेताजी को ऋषि विश्वामित्र द्वारा राजा त्रिशंकु के लिए बनाये गये स्वर्ग में भेज दिया जाए,जहाँ एक के बजाय दो हो जाएँगे। निर्णय होते ही नेताजी की आत्मा को त्रिशंकु के स्वर्ग में ढकेल दिया गया।

दो तीन दिन बाद ही ऊपर राजा त्रिशंकु की गुहार पहुँची—‘हमें यहाँ से निकाला जाए। हम पृथ्वी पर वापस जाने के लिए तैयार हैं। अब हमारी स्वर्ग में रहने की इच्छा मर गयी है।’

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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