श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना  जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज प्रस्तुत है आपकी एक मज़ेदार कथा श्रंखला  “मनमौजी लाल की कहानी…“ की अगली कड़ी ।)   

☆ कथा कहानी  # 46 – मनमौजी लाल की कहानी – भाग – 2 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव 

(प्रशिक्षण की श्रंखला बंद नहीं हुई है पर आज से ये नई श्रंखला प्रस्तुत है,आशा है स्वागत करेंगे.पात्र मनमौजी लाल की कहानी “आत्मलोचन” से अलग है और ज्यादा लंबी भी नहीं है.)

समय का चक्र रुकता नहीं और जिसे हम विकास, आधुनिकता, नई सोच परिभाषित करते हैं, वो बदलते जीवन मूल्यों की कहानी भी होती है.अब बदलते मूल्यों के साथ बहुत कुछ बदल गया और विभिन्न लेवल की परीक्षा पास करते हूये मन और उनकी जीवन संगिनी दोनों ही देश के आई.टी. हब के नाम से विख्यात मेट्रो नगरी में वन एंड हॉफ BHK Flat के स्वामी बनकर कार्यरत हैं. दोनों ही देश की श्रेष्ठ सॉफ्टवेयर कंपनी में इंजीनियर हैं. एक ही कंपनी में कार्यरत होने के कारण ही विवाह बंधन में बंधना, वरीयता पा गया. पिताजी और माँ अपने मूल निवास में आनंदपूर्वक रह रहे हैं, उनका अपने वर्तमान परिवेश में रहकर संतुष्ट और अभ्यस्त होने के अलावा ,पुत्र की स्टडी टेबल विथ चेयर और टू सीटर सोफे से भावनात्मक लगाव भी एक कारण बना हुआ है. मेट्रो की दिनचर्या और परिवेश, आबोहवा उन्हें रास नहीं आती.

कभी अपनी स्टडीज में सोफे के न होने से परेशान मनमौजी के पास आज सुविधा की हर वस्तु है. बैंक के ऋण से लिया गया, शहर की पॉश कालोनी में फ्लेट भले ही वह छोटा हो. कीमती  SUV, फ्लेट में आधुनिकतम सज्जा के सर्वश्रेष्ठ ब्रांड का हर सामान जिसमें कंपनी का सामान्य नहीं एक्सट्रा साईज का एल शेप सोफा भी शामिल है. दोनों के पास व्यस्त रहने के लिये अपने-अपने स्मार्टफोन, अपने अपने-लैपटॉप और बेडरूम और लिविंग रूम में स्मार्ट टीवी मौजूद हैं. घर में एक दरवाजे से जैसे-जैसे आधुनिकता में लिपटी संपन्नता प्रवेश करती है, पुरातन मूल्य दूसरे दरवाजे से बाहर निकलना शुरू कर देते हैं. जीवनशैली की आधुनिकता और मेट्रो में रहने की मज़बूरी के कारण, तुलसी के पौधे की पूजा के लिये न तो जगह होती है न ही श्रद्धा और न ही समय. फ्लेट में लगी देवी देवताओं की फोटो के सामने, समय की कमी और फास्ट लाईफ को जस्टीफाई करते हुये, नतमस्तक होना ही एकमात्र धर्म से जुड़ा कर्मकांड या प्रक्रिया है. दही हांडी, गनपति उत्सव और दुर्गा पूजा या तो टीवी पर कभी कभी कभार देखी जाती है या फिर रास्ते में ट्रैफिक जाम में उड़ती नज़र से दर्शन किये जाते या हो जाते हैं. कोविड काल में मिलना जुलना बंद होने से सोफासेट काम में नहीं आता, पर सामान्य काल में भी अक्सर मेल मुलाकात, बाहर कॉफी शॉप, मल्टीप्लेक्स, मॉल्स में ही हो जाती है. घर पर आना जाना बहुत कम हो जाता है, तो सोफा बेचारा मेहमानों का इंतज़ार करते करते थक जाता है. पर यही सोफा उस वक्त जरूर काम में आता है जब घर में रहने वाले दोनों सॉफ्टवेयर इंजीनियर का अपने अपने शिखर पर स्थित ईगो के कारण हुआ क्लेश, बेडरूम पर पत्नी को और सोफे पर पति को शरण देता है.

टू सीटर से हुई शुरुआत इस तरह एल शेप सोफे पर विराम पाती है, ये इस दौर का सच है जिसे बिना जजमेंटल हुये स्वीकारा जाना चाहिए. सही है या गलत जो भी है इसकी शिकायत बदलते दौर से की जा सकती है पर इस दौर में उलझे पात्रों से नहीं. जब मात्र संपन्नता ही आगे बढ़ने की परिभाषा हो तो नैतिकता और स्नेह घर में और समाज में स्थान नहीं पाते. यही बदलते दौर की विसंगतियां हैं. कहीं कम तो कहीं ज्यादा. मनमौजी न तो मन की कर पाते हैं न ही मौज़ मना पाते हैं.  पर ये सच्चाई ओझल रहे, इसका बंदोबस्त उत्पादों की जबरदस्त मार्केटिंग ने बहुत अच्छे से कर दिया है. जब तक इस कहानी की पहली किश्त नहीं पढ़ेगे, सोफों की ये यात्रा समझने में मुश्किल होगी.

धन्यवाद

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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