श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है “संतोष के दोहे – शिक्षक”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 136 ☆
☆ संतोष के दोहे – शिक्षक ☆ श्री संतोष नेमा ☆
शिक्षक तम को दूर कर, रोशन करे जहान
ज्ञान बाँटता सभी को, होते बहुत महान
होती शिक्षक प्रथम माँ, देती है सद्ज्ञान
अनुभव हमको बाँटते, होते पिता महान
शिक्षक से होता सदा, प्रतिभा का निर्माण
अपने शिष्यों का करें, सदा वही कल्याण
गीली मिट्टी रुँध कर, देते नव आकार
अपने शिष्यों के करें, सपने सब साकार
शिक्षक के सानिध्य से, मिलता है संतोष
सिखलाते सद्गुण वही, हर कर सारे दोष
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈