श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 140 ☆
☆ कविता ☆ दर्द उभय लिंगी प्राणियों का ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆
प्रकृति की एक छोटी सी भूल ।
दे रही है आजीवन शूल।
जिधर भी जाओ, विलग दिखते
न कहीं कुछ होता अनुकूल।।1
पूर्ण है मानव की काया
किंतु देता न जगत सम्मान।
हर तरफ होती बंकिम दृष्टि,
सार्वजनिक मिलता है अपमान।।2
उभरता अपने मन में क्लेश
दे रहे हम जग को संदेश
योग्यता हम में नहीं है कम
कर सकेंगे स्वदेश उन्मेष।।3
मूल्य समझे समाज सारा।
हम भी हैं नीलगगन तारा।
नहीं क्षमता में कुछ भी कम,
कर्म से कभी नहीं हारा।।4
योग्यता क्षमता भरी अपार।
चाहिए बस समाज का प्यार।
करेंगे इस के हित में त्याग
हमारे हिय में भी है आग।।4
मिले अवसर करेंगे काम
देश का हम भी करेंगे नाम
जाति से धर्म से है नाता
हमारे भी हैं प्रभु श्री राम।।5
उपेक्षा से न बनेगा काम ।
नपुंसक का देकर बस नाम।
करेंगे हम इस जग का कर्म,
विश्व में होगा राष्ट्र का नाम।।5
हम भी सहते हैं पीड़ा दंश
हृदय में बसता ईश्वर अंश।
ज्ञान में नहीं किसी से कम
हमें यदि समझा जाए हंस।।6
हम भी हैं माता की संतान।
चाहिए हमको भी पहचान।
ज्ञान शिक्षा श्रम से हम भी
करेंगे भारत का उत्थान।।7
© सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
कविता एक जीवन दर्शन है।