हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 20 – कथा कहानी – नोटों वाली कथरी ☆ – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनकी एक कहानी “नोटों वाली कथरी। आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 20☆

 

☆ कथा कहानी – नोटों वाली कथरी  

 

सबकी अपनी-अपनी ठंड है और ठंड दूर करने के लिए सबकी अलग अपने तरीके की कथरी होती है। संसार का मायाजाल मकड़ी के जाल की भांति है जो जीव इसमें एक बार फंस जाता है वह निकल नहीं पाता है, ऐसी  पूस की कंपकपाती रात में खेत की मेढ़ में फटी कथरी के छेद से धुआंधार मंहगाई घुस जाती थी और भूखे पेट गंगू के दांत कटकटाने लगते थे। गंगू का एक मात्र साथी भूखा कुत्ता ठंड से कूं… कूं करते हुए कथरी के चारों ओर रात भर घूमता था और रातें और लंबी हो जातीं थीं, पर इस साल ठण्ड में कुछ राहत इसलिए मिली कि नोटबंदी के चक्कर में कोई बोरा भर नोट खेत में फेंक गया और गंगू ने बोरा भर नोट के साथ थोड़ी पुरानी रुई को मिलाकर नयी कथरी सिल ली थी नयी कथरी में नोटों की गर्मी भर गई थी जिससे जाड़े में राहत मिली थी। इस कथरी से ठंड जरूर कम हुई थी पर अनजाना डर बढ़ गया था जो सोने में दिक्कत दे रहा था।

डर के मारे गंगू ने थानेदार को चिठ्ठी लिखी कि साहब हमारी गलती नहीं है, कड़कड़ाती ठंड की रात में कोई बोरा भर नोट खेत में फेंक गया, तब से डर के मारे नींद नहीं आती रात दिन चिंता सताती है कि थानेदार साहब हमको जेल में बंद करके ठुकाई न कर दें इसीलिए जे चिठ्ठी में साफ साफ लिख रहे हैं कि हमारा कोई दोष नहीं है और न हमारे ये नोट हैं। हाँ जे जरूर है कि नोट चोरी न जाऐं इसलिए हमने इनको छुपा के कथरी के अंदर सिल लिया। सच में थानेदार साब पूस की ठंड में जे कथरी ओढ़ने में गजब की गरमी देती है पर आपके डण्डे से पिटने का डर और मंहगाई डायन खाये जात है।

एक दिन गांव की चौपाल में चर्चा चल रही थी…. कि नोटबंदी के बाद बंद हुए पुराने नोट पकडे़ जाने पर सजा का प्रावधान है। इसीलिए हमने जे बात जे चिठ्ठी में लिख दई है अब आपके समझ में आये चाहे न आये। हमारी कहीं से कोई गलती नहीं है लिख दिया तो सनद रहे और वक्त जरूरत पे काम आये। और साहब एक बात और है कि भगवान की कृपा से पहली बार नोटभरी रजाई सिली और ठंड में राहत भी मिली पर ये साले चूहे बहुत बदमाशी करते हैं कभी रजाई को काट दिया तो नोट बाहर दिखने लगेंगे और रजाई जब्त हो जाएगी, और फिर जबरदस्ती में हमारो नाम लग जाहे सो हम बार बार बताये दे रहे हैं कि जे नोट हमारे नहीं आयें न इन नोटों को हमने कभी जमीन में गाड़ा भी नहीं। थानेदार साहब हम गरीबी में पैदा भये और लंगोटी लगाये अभी भी आपके एरिया में रह रहे हैं आपको विश्वास न होय तो दो डण्डा मारके हमारी लंगोटी भी छुड़ाय लो, पर हम साफ बताय दे रहे हैं कि इतने सारे नोट हम पहली बार देखें हैं।

सरकार बाकी सब खैरियत है। आप खुद समझदार हैं। मोर गरीब को ध्यान रखियो मोरी कोई गलती नहीं आं।

आपका सेवक

गंगू

सुबह-सुबह खेत की मेढ़ में गंगू की लाश के सिरहाने मिली चिठ्ठी से गांव में हड़कंप मचा हुआ है और थानेदार कथरी में भरे नोट देख-देखकर गांव के सेठ पर शक कर रहे हैं…..