श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 50 – मनोज के दोहे …. ☆
1 अंतर्मन
अंतर्मन में नेह का, बिखरे प्रेम प्रकाश।
मानव जीवन सुखद हो, हर मानव की आश।।
2 ऊर्जा
शांति प्रेम सौहार्द को, सच्चे मन से खोज।
भारत की ऊर्जा यही, मन में रहता ओज।।
3 वातायन (खिड़की)
उर-वातायन खुली रख, ताने नया वितान।
जीवन सुखमय तब बने, होगा सुखद विहान।।
4 वितान (टेंट )
अंतर्मन की यह व्यथा, किससे करें बखान।
फुटपाथों पर सो रहे, सिर पर नहीं वितान।।
5 विहान(सुबह)
खड़ा है सीना तानकर, भारत देश महान।
सदी बीसवीं कह रही, होगा नवल विहान।।
6 विवान (सूरज की किरणें)
अंधकार को चीर कर,निकले सुबह विवान।
जग को किया प्रकाशमय, फिर भी नहीं गुमान।।
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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