डॉ. सलमा जमाल
(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त । 15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।
आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।
आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण लोरी “सो जा – सो जा गजराज… ”।
साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 37
लोरी – सो जा – सो जा गजराज… — डॉ. सलमा जमाल
सोजा, सोजा, गजराज शंकर के ललना ।
तुझे पार्वती माता झुलाये पलना ।।
भुजायें छोटी-छोटी सूंढ़ है प्यारी ,
नेत्र हैं विशाल मूस की सवारी ,
प्रथम पूज्य की नहीं किसी से तुलना।
सो जा ——————————- ।।
इक हाथ हैगी, दूजे में फ़रसा सजा ,
तीजे में कंज ,चौथे में लड्डू धरा ,
सारे देवता मिलके डुलावें बिजना ।
सो जा —————————— ।।
माथे अर्धचन्द्र ,मोती -मांणिक जड़े ,
लम्बोदर कहाते , दयावंत हैं बड़े ,
भूतगणांधि खींचें तुम्हारा झुलना ।
सो जा —————————– ।।
पाप हरो मेरे , भक्त हूं तुम्हारी ,
पूर्ण करो इकदन्त मनोरथ हमारी ,
अपने पराये चाहें मुझको छलना ।
सो जा —————————- ।।
विश्वकर्मा जी लाये चन्दन पलना ,
लताओं की डोरी जामुन फुन्दना ,
भगवती भी करतीं तुम्हारी वन्दना ।
सो जा —————————– ।।
अर्पण करे ‘सलमा ‘ सिंदूर फूल कपूर ,
प्रसाद में लायी गणपति को मोतीचूर ,
साक्षात् दर्शन से कब होगा मिलना ।
सो जा —————————— ।।
© डा. सलमा जमाल
298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
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