सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “पुरानी दोस्त”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 16 ☆
कभी
वो तुम्हारी पक्की सहेली हुआ करती होगी,
एक दूसरे का हाथ थामे हुए
तुम दोनों साथ चला करते होगे,
ढलती शामों में तो
अक्सर तुम उसके कंधों पर अपना सर रख
उससे घंटों बातें किया करते होगे,
और सीली रातों में
उसकी साँसों में तुम्हारी साँस
घुल जाया करती होगी…
तब तुम्हें यूँ लगता होगा
तुम जन्मों के बिछुड़े दीवाने हो
और बिलकुल ऐसे
जैसे तुम दोनों बरसों बाद मिले हो
तुम उसे अपने गले लगा लिया करते होगे…
तुम उसे दोस्त समझा करते थे,
पर वो तुम्हारी सबसे बड़ी दुश्मन थी!
यह तो अब
तुमने बरसों बाद जाना है
कि तनहाई का
कोई अस्तित्व था ही नहीं,
ये तो तुम्हारे अन्दर में बसी थी
और तुम्हारे कहने पर ही निकलती थी…
सुनो,
एक दिन तुम उठा लेना एक तलवार
और उसके तब तक टुकड़े करते रहना
जब तक वो पूरी तरह ख़त्म नहीं हो जाए…
उसके मरते ही
तुम्हारे ज़हन में
जुस्तजू जनम लेगी
और तब तुम्हें
तनहाई नामक उस पुरानी सहेली की
याद भी नहीं आएगी…
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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