(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है श्री कुमार सुरेश जी द्वारा लिखी कृति “व्यंग्य राग” पर चर्चा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 123 ☆
☆ “व्यंग्य राग” – श्री कुमार सुरेश ☆ चर्चाकार – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’’ ☆
कृति : व्यंग्य राग
लेखक : कुमार सुरेश
प्रकाशक: सरोकार प्रकाशन, भोपाल (मप्र),
मूल्य: 200 रुपये, संस्करण वर्ष २०२०
चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल
कुमार सुरेश की पुस्तकें “व्यंग्य राग” व्यंग्य संकलन, व्यंग्य उपन्यास तंत्र कथा, शब्द तुम कहो, एवं भाषा सांस लेती है प्रकाशित हो चुकी हैं. स्पष्ट है कि वे बहुविध रचनाकार हैं. कविता की तरह नपे तुले शब्दों में गहरी अभिव्यक्ति इस संग्रह के छोटे छोटे व्यंग्य लेखों में पढ़ने मिली. जरा धीरे धीरे उड़ो मेरे साजना शीर्षक के साथ वे स्वप्न लोक में उड़ जाते हैं, लोग चिल्लाते हुये उनका पीछा करते हैं ” तेरी हिम्मत कैसे हुई उड़ने की, हम जमीन पर खड़े हैं और तू उड़ने लगा “, नींद खुलती है तो पत्नी सुनाती है ” क्या उड़ना उड़ना बक रहे थे, उड़ने की कोशिश भी मत करना ” मैंने उनका यह व्यंग्य उनके मुंह से सुना हुआ है. ” मुझे पता लगा कि ऊचाई के साथ दूसरों को नुकसान पहुंचाने की ताकत भी होनी चाहिये तभी लोग सफलता को स्वीकार करते हैं ” जैसे गहरे कटाक्षों से लबरेज व्यंग्य में उन्होंने अच्छे तरीके से भाषाई ट्रीटमेंट के साथ कथ्य को निभाते हुये अपनी बात रखी है.
नदी किनारे क्षण भर मुर्गा में वे भाषा चातुर्य के साथ बैंक के लोन वसूली अभियान की बात करते हैं, किसान को नया लोन देकर, क्षण भर के लिये बैंक की कागजों पर पुराने लोन की वसूली बता, किसान को क्षण भर कर्ज मुक्त बता दिया गया, नदी के किनारे को भी अंग्रेजी में बैंक कहते हैं, नदी किनारे किसान मुर्गा बन गया, किसान की पीड़ा में अपना उल्लू सीधा करते वसूली कर्मचारियों पर बुनी गई हास्य व्यंग्य कथा है.
इसी शैली में सोशल मीडीया श्रमिक, पीछा छुड़ा लो जी इस नाक से, उड़ जायेगा हंस अकेला, छेड़ना हो तो सुर छेड़िये, एक इंडियन की भारतीयों से अपील, गठबंधन, ठग बंधन और लठ बंधन, ब्यूटी पार्लर और साहित्य, इनका उनका राजनैतिक कैरियर, नेता नीति नेति नेति, घोड़े कहाँ बिकते हैं भैया आदि छोटे छोटे राजनैतिक, सामाजिक विषयों पर व्यंग्य लेख पुस्तक में संकलित हैं. ये लेख वर्ष १९८७ से २०२० की लम्बी अवधि में विभिन्न समाचार पत्रों यथा नईदुनिया, राज एक्सप्रेस, विजय दर्पण टाईम्स, आदि में प्रकाशित हुये हैं, जिसका उल्लेख फुट नोट में किया गया है.वर्तमान में व्यंग्य, पाठक, संपादक, लेखक सभी की प्रिय विधा है. व्यंग्य को यह स्वरूप देने में श्रीलाल शुक्ल, परसाई, शरद जोशी, रवीन्द्रनाथ त्यागी, नरेंद्र कोहली, शंकर पुणतांबेकर, सुशील सिद्धार्थ, की राह पर बढ़ते प्रेम जनमेजय, हरीश नवल, ज्ञान चतुर्वेदी, गिरीश पंकज, सुभाष चन्दर, सुरेश कांत जैसे अनेकानेक व्यंग्यकारों का सतत लेखन है. कुमार सुरेश भी इसी राह के अनथक यात्री हैं. वे व्यंग्य उपन्यास से व्यंग्य कविता तक के विस्तृत विधा आयाम के व्यंग्यकार हैं. एक एक्टिविस्ट से बातचीत प्रश्न उत्तर शैली में रचा गया व्यंग्य है. साहित्य पुरस्कार योजना में हास्य कटाक्ष से भरी बिन्दु रूप नियमावली में व्यंग्य अभिव्यक्ति है. यथा नियमावली में एक नियम है कि पुरस्कार लेन देन योजना के अंतर्गत उस रचनाकार को प्रदाय किया जायेगा जो खुद किसी पुरस्कार का कर्ता धर्ता होगा, उसे अलिखित समझौता करना होगा कि “वह मेरी किताब को पुरस्कृत करेगा और मैं उसकी “. साहित्यकारों का नार्को टेस्ट, एक आभार पत्र जैसे व्यंग्य लेखो में थोड़ा डिफरेंट तरीके से मस्ती में वे व्यंग्य रस प्रवाहित करते मिले.
ओम वर्मा ने किताब की भूमिका लिखी है, उन्होंने संग्रह के व्यंग्य लेखों में सार्थकता और जीवंतता महसूस की है. पुस्तक त्रुटि रहित मुद्रण के संग, स्तरीय प्रस्तुति है. कुमार सुरेश से पाठको को बहुत कुछ निरंतर मिल रहा है, बस उन्हें सोशल मीडीया पर फालो कीजीये अखबार, पत्र पत्रिकाओ में उन्हें पढ़ते रहिये.
चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३
मो ७०००३७५७९८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈