डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना “पनघट पर सखियाँ…”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 151 – साहित्य निकुंज ☆
☆ पनघट पर सखियाँ… ☆
ये बतियाती औरतें, सुना रही है हाल।
समय मिले घर में नहीं, रहता यही सवाल।।
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पनघट पर सखियाँ खड़ी, बांटे सुख- दुख साथ।
हँसी ठिठोली कर रही, ले हाथों में हाथ।।
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हम भी तो हैं मानते, अपने पति की बात।
सास ससुर को पूजना, है दिन की शुरुवात।
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बेटा बिटिया पढ़ रहे, वो जा रहे विदेश।
कहती है दूजी सखी, अच्छा है संदेश।।
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पानी अब भर लो सखी, देखें घर में राह।
देर हुई हमको सखी, मिलती नहीं पनाह।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
मन की व्यवस्था का यथार्थ व मनमोहक चित्रण
अतिसुंदर
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