श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी  की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – “कुर्सी का सवाल”)  

☆ लघुकथा # 156 ☆ “कुर्सी का सवाल” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

नेता जी हमसे हमेशा भाषण लिखवाते हैं फिर सुबह चार बजे उठकर भाषण को चिल्ला चिल्ला कर रटते हैं। आज के भाषण में हमने तुलसीदास जी की ये चौपाई का जिक्र कर दिया……

सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस |

राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||

नेताजी ने इस चौपाई को सौ बार पढ़ा पर उन्हें याद नहीं हो रही थी और न इसका मतलब समझ आ रहा था तो उन्होंने चुपके से फोन करके हमें अकेले में बुलाया और कहने लगे इस बार के भाषण में ये क्या लिख दिया है हमारे समझ में नहीं आ रहा है, इसका असली मतलब बताइये। हमने कहा कि तुलसीदास जी ने इन चार लाइनों में कहा है कि  मंत्री, वैद्य और गुरु —ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से  प्रिय बोलते हैं तो राज्य, शरीर एवं धर्म – इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है ।

नेताजी कुछ सोचते रहे फिर बोले – नाश हो जाता है तो कोई बात नहीं, हमारी कुर्सी तो सलामत रहेगी न……..?

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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