श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

 

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है उनकी लघुकथा  “सौतेली बेटी”। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं – #23 ☆

 

☆ सौतेली बेटी ☆

 

“बाबा ! ऐसा मत करिए. वे जी नहीं पाएंगे” बेटी ने अपने पिता को समझाने की कोशिश की.

“मगर, हम यह कैसे बरदाश्त कर सकते हैं कि हमारी बेटी अलग रीतिरिवाज और संस्कार में जीए. हम यह सहन नहीं कर पाएंगे. इसलिए तुम्हें हमारी बात मानना पड़ेगी.”

“नहीं बाबा ! मैं आप की बात नहीं मान पाऊंगी. मैं अब नौकरी पर लग चुकी हूं. उन के सुखी रहने के दिन अब आए है. उन्हें नहीं छोड़ सकती हूं.”

पर, पिताजी नहीं माने, “तुम्हें हमारे साथ चलना होगा. अन्यथा हम मुकदमा लगा देंगे. आखिर तुम हमारी संतान हो ?”

“आप नहीं मानेगे,”’ बेटी की आंख में आंसू आ गए. वह बड़ी मुश्किल से बोल पाई, “बाबा ! यह बताइए, जब आप ने दो भाई और चार बेटियों में से मुझे बिना बच्चे के दंपत्ति को सौंप दिया था, तब आप का प्यार कहां गया था?” न चाहते हुए वह बोल गई, “मेरे असली मातापिता वहीं है.”

“वह हमारी भूल थी बेटी,” बाबा ने कहा तो बेटी उन के चरण स्पर्श करते हुए बोल उठी, “बाबा! मुझे माफ कर दीजिएगा. मगर, यह आप सोचिएगा, यदि आप मेरी जगह होते और आप के जैविक मातापिता आप को जन्म ​देने के बाद किसी के यहां छोड़ देते तो आप ऐसी स्थिति में क्या करते?” कहते हुए बेटी आंसू पौंछते हुए चल दी.

बेटी की यह बात बाबा को अंदर तक कचौट गई. वे कुछ नहीं बोल पाए. उन का हाथ केवल  आशीर्वाद के लिए उठ गया.

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments