श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “#इस सावन में, तुम क्यों नहीं आये ?…#”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 101 ☆
☆ # इस सावन में, तुम क्यों नहीं आये ?… # ☆
( सावन में बिछड़े प्रेमी युगल की प्रणय गाथा है)
यह सावन भी बीत गया
बादल बरस कर रीत गया
आंखों में आंसू भर आये
इस सावन में
तुम क्यों नहीं आये ?
कली- कली यह पूछ रही है
एक पहेली बूझ रही है
जो तितली बन लहराती थी
इस बगिया में छा जाती थी
कितने लुभावने रंग थे उसके
कितने दिलकश ढंग थे उसके
वो बगिया की रानी थी
हर शै उसकी दीवानी थी
सब पर निराशा है छाई
वो सावन में क्यों नहीं आई
हम किस किस को समझाये
इस सावन में
तुम क्यों नहीं आये ?
यूं ही सावन में मिली थी तुम
शुभ्र वस्त्र में ढली थी तुम
मंदिर की सीढ़ियां चढ़ रही थी
मेरे दिल की धड़कन बढ़ रही थी
हाथों में था पूजा का थाल
उड़ रहे थे मखमली बाल
नाज़ुक उंगलियों से जब घंटी बजाई
मंदिर में मदहोशी सी छाई
तुमने जोड़े शिव जी को जब हाथ
मैंने मांगा था बस तुम्हारा साथ
हमने मिलकर थे फूल चढ़ाये
फिर इस सावन में
तुम क्यों नहीं आये ?
फिर दिन-रात एक हो गए
हम एक दूजे में खो गए
मंद मंद बहे पुरवाई
जैसे पिया मिलन की रुत आई
केवड़े के बन में हो नागिन भटकी
मदमस्त हो तुम मुझसे लिपटी
टूट गये फिर सारे बंधन
मिट्टी बन गई जैसे चन्दन
सागर में कितनी लहरें उठीं
वो साहिल से टकराकर टूटी
हमने धरती पर ही था स्वर्ग बसाये
इस सावन में
तुम क्यों नहीं आये ?
जब आंख खुली और तंद्रा टूटी
सारी दुनिया हमसे थी रूठी
अपने हो गये थे सब पराए
दिल की बात किसे बताए
आंख में आंसू थे हर पल
भोग रहे थे दुनिया का छल
हम दोनों के बीच उठ गई दीवारें
रूढ़िवादी लोगों ने खींची तलवारें
इस जुदाई को हम दोनों ने सहा था
सावन में मिलूंगी तुमने कहा था
फिर तुमने क्यों ना वादे निभाये
इस सावन में
तुम क्यों नहीं आये ? /
© श्याम खापर्डे
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